अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद जानें चीन को सता रहा किस बात का डर

Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान के दोबारा कब्जे के बाद इस वक्त वहां के लोगों के सामने भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. अफगानिस्तान से अमेरिका की जल्दबाजी में वापसी चीन के लिए एक जीत और बीजिंग के लिए पूरे क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के तौर पर देखा जा रहा है. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, यह तालिबान के लिए एक सबक के तौर पर भी उठाया गया है ताकि वह अमेरिकी सुरक्षा पर ज्यादा भरोसा न करे.    

हालांकि, चीन के लिए विडंबना यह है कि उसकी सीमाओं के पास अमेरिकी सैनिकों से भी बदतर बात यह है कि उनकी वहां बिल्कुल भी मौजूदगी नहीं है. अफगानिस्तान अब बीजिंग के लिए एक बड़ा सिरदर्द है, जिसे डर है कि वहां अराजकता न केवल उसके अशांत क्षेत्र शिनजियांग में बल्कि पाकिस्तान तक फैल जाएगी.

पीपुल्स रिपब्लिक ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सिग्नेचर पॉलिसी के तहत वन बेल्ट एंड वन रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में इस्लामाबाद को विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के साथ-साथ भारी ऋण दिया है.

2013 में बीआरआई की स्थापना के बाद से, चीन ने विदेशों में अरबों डॉलर सड़कों, बांधों और बिजली संयंत्रों के निर्माण के लिए दिया है. इसके दो मुख्य बैंक – चीन विकास बैंक और चीन के निर्यात-आयात बैंक ने पूरे एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप के देशों को अनुमानित  282 बिलियन डॉलर का ऋण दिया है. इसके बाद बीजिंग की हालत ये हो गई कि 2020 में चीन के पूंजी खाते में पहली बार घाटा दर्ज किया गया. 

पाकिस्तान, जो चीन और अफगानिस्तान का पड़ोसी है, वह बीजिंग के विदेशी बुनियादी ढांचा अभियान का सबसे बड़ा फायदा पाने वाला है. सिर्फ चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की कीमत 62 अरब डॉलर बताई जा रही है. मध्य एशिया में चीन के हितों और हिंद महासागर में शिपिंग लेन के बीच देश संभावित रूप से एक महत्वपूर्ण कड़ी है.

ये भी पढ़ें:

UNSC Meeting: जयशंकर का पाक पर निशाना, कहा- लश्कर, जैश जैसे आतंकवादी संगठन बेखौफ होकर अपनी गतिविधियों का संचालन कर रहे

Afghanistan News: अफगानिस्तान में बिगड़े हालात, भारत के मेडिकल टूरिज्म पर असर पड़ने की आशंका

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *