ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशेष महत्व है। इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण किया जाता है। इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे तभी से यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु व भगवान महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाता है।
इस दिन सुहागिन स्त्रियां अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां, पति की लंबी आयु एवं सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वट वृक्ष की धूप-दीप नैवेद्य से पूजा की जाती है। रोली, अक्षत अर्पित कर वट वृक्ष पर कलावा बांधा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस व्रत में स्त्रियां वट वृक्ष के मूल को जल से सींचती हैं। वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। इस दिन सुबह स्नान कर नए वस्त्र धारण किए जाते हैं। वट वृक्ष के आसपास गंगाजल का छिड़काव किया जाता है। बांस की टोकरी में सात अनाज भरा जाता है। वट वृक्ष को जल अर्पित किया जाता है और फल, फूल, मौली, चने की दाल, अक्षत, धूप-दीप, रोली आदि से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष ज्ञान का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को निष्ठा से रखती हैं, उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। पति पर आई सभी विपत्तियां दूर हो जाती है। परिवार में सुख शांति आती है। वट वृक्ष की पूजा से घर में धनलक्ष्मी का वास होता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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