वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया या आखा तीज का पवित्र त्योहार मनाया जाता है। इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। मान्यता है कि इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था। अक्षय तृतीया तिथि को ही महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। भगवान ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी तिथि को हुआ था, इसीलिए इसे अक्षय तिथि कहते हैं। अक्षय तृतीया ही भगवान परशुराम के जन्मदिन का शुभ दिन है।
इसी तिथि पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मंदिर में सिर्फ इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन किया गया जप, तप, हवन और दान भी अक्षय हो जाता है। इस दिन अपने या स्वजनों द्वारा जाने-अनजाने में किए गए अपराधों की सच्चे मन से भगवान श्री हरि विष्णु से क्षमा प्रार्थना की जाए तो भगवान अपराधों को अवश्य क्षमा कर देते हैं और सदगुण प्रदान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन ख़रीदा गया सोना कभी समाप्त नहीं होता, क्योंकि भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी स्वयं उसकी रक्षा करते हैं। अक्षय तृतीया पर तुलसी की पूजा करें। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इस दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। इस दिन पितरों को किया गया तर्पण और किसी प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। मान्यता है कि इस दिन जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होती हैं।
यह जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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