शब-ए-बरआत यानि इबादत भरी रात। यह रात इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की 15वीं तारीख को आती है। इस रात में अल्लाह तआला की रहमत बरसती हैं। पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-बरआत कहा जाता है। शब-ए-बरआत की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है। इस रात अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, उनकी मगफिरत की दुआएं की जाती हैं।
शब-ए-बरआत को इस्लाम धर्म में इबादत की रात के तौर पर जाना जाता है। इस्लाम में यह रात बेहद फजीलत की रात मानी जाती है। इस रात को मुस्लिम दुआएं मांगते हैं और गुनाहों की तौबा करते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार शब-ए-बरआत पूर्व के समय में किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली मानी जाती है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इस रात को अल्लाह तआला अपने बंदों का पूरे साल का हिसाब-किताब करते हैं। इस रात पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। बरकत वाली इस रात में हर जरूरी और सालभर तक होने वाले काम का फैसला किया जाता है और यह तमाम काम फरिश्तों को सौंपे जाते हैं।
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