ऑस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान से अमेरिका एवं नाटो के सैनिकों की अंतिम रूप से वापसी से पहले सुरक्षा का हवाला देते हुए इस सप्ताह के अंत में राजधानी काबुल में अपना दूतावास बंद कर रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी को अमेरिका के ‘‘दीर्घकालिक युद्ध’’ का खात्मा बताया है. ऑस्ट्रेलिया ने मंगलवार को दूतावास को अस्थायी रूप से बंद करने की घोषणा की और यह इस सप्ताह के अंत तक प्रभावी हो जायेगा.
अफगानिस्तान की राजधानी में मौजूद अन्य दूतावासों ने भी गैर जरूरी कर्मियों को स्वदेश भेज दिया है और अपने-अपने नागरिकों को अफगानिस्तान की यात्रा से बचने की हिदायत दी है तथा देश में मौजूद अपने अन्य नागरिकों को जल्द से जल्द से अफगानिस्तान से जाने का अनुरोध किया है. संपर्क किये जाने पर कई दूतावासों ने अपनी योजना की जानकारी नहीं दी. हालांकि, अमेरिका समेत कई देशों के अपने-अपने दूतावासों से गैर जरूरी कर्मियों को स्वदेश भेजने की खबर है. पिछले महीने अमेरिका ने अपने गैर जरूरी कर्मियों को स्वदेश लौटने का आदेश दिया था.
काबुल में तथाकथित बेहद सुरक्षा वाले ‘ग्रीन जोन’ में ये दूतावास मौजूद हैं. बड़ी-बड़ी दीवारों, कंटीली तार और लोहे के गेट से घिरे ये दूतावास आम जनता की नजरों से छिपे रहते हैं. इन इमारतों की सुरक्षा के लिए राजधानी की सड़कों पर यातायात भी बंद कर दिया जाता है. अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि वह दूतावासों को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन सुरक्षा मुहैया कराने के मुद्दे पर सरकार की क्षमता को लेकर सवाल उठते रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया सरकार के सांसद एवं पूर्व राजनयिक दवे शर्मा ने कहा कि दूतावास के बंद होने का कारण ‘‘अस्थायी है और वास्तव में यह हमारे सुरक्षाकर्मियों की वापसी के बाद कर्मियों की सुरक्षा से संबंधित है.’’ काबुल में राजनीतिक विश्लेषक अब्दुल्ला बहीर ने ऑस्ट्रेलिया द्वारा दूतावास बंद करने और अन्य दूतावासों के अपने कर्मियों को हटाने के फैसले की निंदा की है और कहा है कि इससे लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने की अफगान सरकार की क्षमता पर सवाल उठता है.
हालांकि, तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने बताया कि वह राजनयिकों को नुकसान नहीं पहुंचायेंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहयोग करेंगे. उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें चिंता नहीं करनी चाहिए.’’
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