किम जोंग ने माना, उत्तर कोरिया में गंभीर खाद्य संकट

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दुनिया से अलग-थलग पड़े उत्तर कोरिया में भोजन का गंभीर संकट पैदा हो गया है. लोगों को भूखे रहना पड़ रहा है. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन (Kim Jong-un ) ने पहली बार औपचारिक तौर पर स्वीकार किया है कि उनका देश खाने की भारी कमी से जूझ रहा है. उन्होंने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में कहा, लोगों के खाने की स्थिति अब तनावपूर्ण होती जा रही है. किम ने कहा कि उत्तर कोरिया अनाज की पैदावार के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सका क्योंकि पिछले साल आए typhoons की वजह से बाढ़ आ गई थी जिसके कारण पैदावार नहीं हुई. 

कोरोना के कारण चीनी सीमा भी बंद
ऐसी रिपोर्टें आ रही हैं कि देश में खाने के सामान की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. उत्तर कोरियाई समाचार एजेंसी एनके न्यूज़ के मुताबिक़ देश में केला प्रति किलो तीन हज़ार रुपए में बिक रहा है. उत्तर कोरिया में संकट कोरोना महामारी की वजह से भी गंभीर हो गया क्योंकि उसने पड़ोसी देशों के साथ अपनी सीमा बंद कर दी. उत्तर कोरिया का ज्यादातर सामान चीन से आता है लेकिन कोरोना की वजह से उसने चीन की सीमा भी सील कर दिया है. इस वजह से चीन के साथ व्यापार कम हो गया. उत्तर कोरिया खाने के सामान, खाद और ईंधन के लिए चीन पर निर्भर रहता है. इसके अलावा उत्तर कोरिया अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से भी जूझ रहा है जो उसके परमाणु कार्यक्रमों की वजह से लगाए गए थे.

कृषि उत्पाहदन बढ़ाने के तरीके खोजने के निर्देश
किम जोंग ने अधिकारियों से कहा कि वे कृषि उत्पाोदन बढ़ाने के तरीके खोजें. तानाशाह किम जोंग का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब वह अपने कम वजन को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गए हैं. उत्तवर कोरियाई समाचार एजेंसी केसीएनए ने कहा कि मंगलवार को किम जोंग उन ने सत्ताहरूढ़ वर्कर्स पार्टी के प्लेसनरी सेशन की शुरुआत की. इसी दौरान उन्होंमने पार्टी कार्यकर्ताओं को खाद्यान संकट के प्रति आगाह किया. उत्तर कोरिया में कृषि उत्पादन में कमी आई है मगर किम ने बैठक में कहा कि पिछले एक साल से तुलना करने पर देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ा है. बैठक में अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साथ संबंधों पर भी चर्चा होनी थी पर अभी उसका ब्यौरा नहीं दिया गया है. किम ने इस साल अप्रैल में भी माना था कि उनका देश कठिनाईयों से गुज़र रहा है जो कि एक दुर्लभ बात समझी गई थी.

अकाल की आशंका
उन्होंने तब अधिकारियों से कहा था कि अपनी जनता को मुश्किलों से थोड़ी सी भी राहत देने के लिए फिर से एक ‘मुश्किल मार्च’ (The Arduous March) शुरू किया जाए. इस शब्द का इस्तेमाल उत्तर कोरिया में 90 के दशक में किया गया था जब देश भारी अकाल से जूझ रहा था. तब सोवियत संघ के विघटन के बाद उत्तर कोरिया को मदद मिलनी बंद हो गई थी. उस अकाल के दौर में भुखमरी से कितने लोगों की मौत हुई इसकी स्पष्ट जानकारी तो नहीं है, मगर समझा जाता है कि ये संख्या 30 लाख के आस-पास रही होगी.

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