डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आईसीएमआर और एम्स ने बड़ा फैसला लेते हुए कोरोना के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया है। आईसीएमआर के नेशनल टास्क फोर्स के सदस्यों के सुझाव के एक दिन बाद यह निर्णय आया है। कोविड-19 संबंधी नेशनल टास्क फोर्स की बैठक में सभी सदस्य इस पक्ष में थे की प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी नहीं है कि और इसे कोरोना इलाज पद्धति से हटा दिया जाना चाहिए।
बीते दिनों कई क्लीनीशियंस और साइंटिस्ट ने प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल साइंटिफिक सेक्रेटरी के विजय राघवन को लेटर लिखकर देश में कोविड-19 के लिए कोवैलेसेंट प्लाज्मा के “तर्कहीन और गैर-वैज्ञानिक उपयोग” के खिलाफ चेतावनी दी थी। पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल्स ने कहा कि कोविड पर प्लाज्मा थेरेपी के मौजूदा सबूत और ICMR के दिशानिर्देशों मौजूदा सबूतों पर आधारित नहीं हैं।
क्या होती है प्लाज़मा थेरेपी?
प्लाज़मा खून में मौजूद पीले रंग का लिक्विड कंपोनेंट होता है। एक स्वस्थ शरीर में 55 प्रतिशत से अधिक प्लाज्मा होता है और इसमें पानी के अलावा हार्मोन्स, प्रोटीन, कार्बन डायऑक्साइड और ग्लूकोज़ मिनरल होते हैं। जब कोई मरीज कोरोना से ठीक हो जाता है तो उसका यही प्लाजमा लेकर कोरोना पीड़ित को चढ़ाया जाता है। इसे ही प्लाजमा थेरेपी कहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अगर कोरोना से ठीक हो चुके मरीज का प्लाजमा, बीमार मरीज को चढ़ाया जाए तो इससे ठीक हो चुके मरीज की एंटीबॉडीज बीमार व्यक्ति के शरीर में ट्रांसफर हो जाती हैं और ये एंटीबॉडिज वायरस से लड़ना शुरू कर देती हैं। लेकिन इसे लकर जो स्टडी सामने आई है वो हैरान करने वाली है। ब्रिटेन में इसे लेकर 11 हजार लोगों पर एक परीक्षण किया गया लेकिन इस परीक्षण में Plasma Therapy का कोई कमाल नहीं दिखा।
AIIMS और ICMR की ने नई गाइडलाइन जारी की
कोरोना के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी को हटाने के बाद ICMR ने नई गाइडलाइन भी जारी कर दी है। इससे पहले की गाइडलाइन्स में प्लाजमा थेरेपी को लेकर आईसीएमआर ने दो बड़ी बातें कही थी। पहली बात ये कि प्लाजमा थेरेपी का इस्तेमाल कोरोना के उन्हीं मरीजों पर हो सकता है, जिनमें संक्रमण के मामूली या मध्यम लक्षण हैं।
दूसरी बात ये कि अगर इस श्रेणी के मरीजों को ये इलाज दिया भी जाता है तो इसकी समय सीमा 4 से 7 दिन होनी चाहिए। लेकिन इसके बावजूद कई अस्पतालों में गंभीर मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा था।
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