कोरोना संक्रमण रोकने के लिए देश के अधिकतर राज्यों में लॉकडाउन के बीच बढ़ती महंगाई ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। खाद्य तेलों के साथ अब दाल और दूसरी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने लगी है। इस बीच, केंद्र ने राज्यों को आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर कड़ी नजर रखने के लिए निर्देश जारी किए हैं। सबसे ज्यादा महंगाई खाद्य तेल की कीमतों में हुई हैं।
खुले बाजार में खाद्य तेल के दाम लगभग डबल
पिछले साल के मुकाबले खुले बाजार में तेल के दाम लगभग डबल हो गए। उपभोक्ता मंत्रालय के मूल्य निगरानी प्रभाग के आंकड़ों के मुताबिक एक अप्रैल से 20 मई के बीच सरकारों की तेल की कीमतों में तीस रुपए प्रति किलो की वृद्धि हुई है। पोर्ट ब्लेयर में यह वृद्धि 45 रुपए है। दिलचस्प बात यह है कि इस अवधि के दौरान तेलंगाना के सूर्यापेट में सरसों के तेल के दाम 25 रुपए प्रति किलो तक कम हुए हैं।
अरहर-मसूर की दाल के दाम करीब 10 रुपए बढ़े
सरसों के तेल के साथ वनस्पति, सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल की कीमतों में भी वृद्धि का रुझान है। खुले बाजार में यह इजाफा काफी ज्यादा है। इससे लोगों की जेब पर सीधा असर पड़ रहा है। खाद्य तेलों के साथ दालों की कीमत भी बढ़ रही है। सरकार के मूल्य निगरानी प्रभाग के आंकड़ों के अनुसार एक अप्रैल से बीस मई के दौरान अरहर और मसूर की दाल के दाम करीब दस रुपए प्रति किलो बढ़े हैं। बंगलुरु ईस्ट रेंज में मसूर की कीमतों में 40 रुपए प्रति किलो की वृद्धि हुई है।
सरकार भी कीमतों में इजाफे के रुझान से वाकिफ
सरकार भी कीमतों में इजाफे के रुझान से वाकिफ है। इसलिए, केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने अधिकारियों को कीमतों पर कड़ी नजर रखने के साथ असामान्य रूप से कीमतों में इजाफे को रोकने और कीमतों को स्थिर रखने के लिए पर्याप्त स्टॉक बनाने के निर्देश दिए हैं। बुधवार को जारी किए गए इन निर्देशों में कहा गया है कि आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ राज्य सरकार कार्रवाई करे।
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कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना इस वृद्धि को मांग और आपूर्ति से जोड़कर देखते हैं। उनके मुताबिक, लॉकडाउन और कफ्र्यू की वजह से आपूर्ति बाधित हुई है। ट्रांसपोर्ट के सााधन भी सीमित है। इसलिए, मांग के मुकाबले आपूर्ति कम है। इसके खाद्य तेल की कमी को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर हैं। देश सालाना करीब 75 हजार करोड़ का खाद्य तेल आयात करता है।
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