डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी मुजरिम को जेल भेजने के बाद कोरोना से मौत हो जाएगी, इस डर से अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया। याचिका की सुनवाई जस्टिस विनीत शरण और भूषण रामकृष्ण गवई के द्वारा की गई। दरअसल, कुछ वक्त पहले इलाहाबाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जेलों में कैदियों की अधिक संख्या हैं, बढ़ते मामलों को देखते हुए अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
इस फैसले को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस विनीत शरण और भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि “आपको टिप्पणीयों से परेशानी है” यह एकतरफा टिप्पणी थी सभी लोगों को अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह इस फैसले पर नोटिस जारी करेंगे लेकिन स्टे नहीं लगाएंगे। लेकिन हम इस एक तरफा बयान पर रोक लगा सकते हैं।
130 मामलों में आरोपी को जमानत देने पर उठा बवाल
दरअसल हाई कोर्ट ने 130 मामलों में आरोपी प्रतीक जैन को अग्रिम जमानत दे दी। इसके बाद से ही फैसले को लेकर बहस शुरु हो गई थी।हाई कोर्ट ने आदेश में कहा था कि जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे है, उससे किसी भी आरोपी को जेल भेजना,उसकी जान के लिए जोखिम बन सकता है। इसके अलावा यह जेल कर्मचारी, पुलिस कर्मियों के लिए भी जोखिम है।
हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को एक निश्चित अवधि के लिए अग्रिम जमानत दी जा सकती है ।कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लेख किया था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत की जेले भरी पड़ी है। ऐसे में जेले की भीड़ को कम करना चाहिए। कैदियों और कर्मचारियों की सेहत को मद्देनजर रखते हुए यह फैसला लिया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा था कि उन सभी कैदियों को जेल से निकालना चाहिए जिन्हें बीते साल बेल या पैरोल मिली थी।
मुकदमा चलने के लिए आरोपियों का जिंदा रहना जरूरी: हाईकोर्ट
इसी फैसले का जिक्र करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आरोपियों पर मुकदमा तो केवल तभी चलाया जा सकेगा जब वे जीवित रहेंगे। महामारी के दौरान भी उन्हें जेल में रखने से इस बात की आशंका बढ़ जाएगी कि ट्रायल शुरू होने से पहले ही उन आरोपियों की मौत हो जाए’।
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