एक ताजा रिसर्च से खुलासा हुआ है कि इन्फलुएंजा के खिलाफ जिन लोगों का टीकाकरण हो चुका है, उनको महत्वपूर्ण आपातकालीन देखभाल चिकित्सा की कम जरूरत पड़ सकती है और फ्लू की वैक्सीन कोरोना वायरस के गंभीर प्रभावों को कम कर सकती है. दुनिया भर से 75,000 कोविड-19 मरीजों के विश्लेषण में पाया गया है कि फ्लू की वार्षिक वैक्सीन कोविड-19 मरीजों में स्ट्रोक, डीप वेन थ्राम्बोसिस (डीवीटी) के जोखिम को कम करती है.
इन्फलुएंजा की वैक्सीन कोरोना के गंभीर असर को कर सकती है कम
डीप वेन थ्राम्बोसिस नस के भीतर ब्लड क्लॉट बनने को कहा जाता है और ये ज्यादातर निचले पैर या जांघ में होता है, हालांकि ये कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी हो सकता है. फ्लू की रोकथाम के लिए जब एक शख्स का टीकाकरण किया जाता है, तो वैक्सीन कोविड-19 के खिलाफ थोड़ा सुरक्षा देती है क्योंकि ये जन्मजात इम्यून सिस्टम को बढ़ाने में मदद करती है. इसके पीछे दूसरा संभावित कारण ये है कि फ्लू की वैक्सीन लगवाने वाले मरीजों की सेहत वैक्सीन नहीं लगवाने वालों के मुकाबले बेहतर हो सकती है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जिन कोविड मरीजों का फ्लू के खिलाफ टीकाकरण हो चुका था, उनके अस्पताल में भर्ती होने और इंटेसिव केयर यूनिट में दाखिल होने की कम संभावना पाई गई. मियामी यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल सर्जरी के प्रोफेसर और शोधकर्ता देविंद्र सिंह ने कहा, “हमने संबंध का पता लगाया जो कोविड-19 की गंभीर बीमारी के खिलाफ थोड़ा सुरक्षा फ्लू टीकाकरण से दिखने लगा.” उनका कहना है कि ये रिसर्च खास तौर पर तीसरे देशों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि महामारी दुनिया के बहुत सारी जगहों में संसंधानों पर दबाव डाल रही है. इन देशों को फ्लू के मौसम का भी खतरा होता है. हालांकि, वैज्ञानिकों ने ये भी जोर दिया है कि उनके नतीजों से ये न समझा जाए कि फ्लू की वैक्सीन कोविड-19 वैक्सीन के विकल्प के तौर पर है.
शोधकर्ताओं ने किया सावधान नहीं कोविड-19 वैक्सीन का विकल्प
सिंह ने कहा, “हम निश्चित रूप से कोविड-19 वैक्सीन की सिफारिश करते हैं, लेकिन किसी भी तरह से सुझाव नहीं है कि फ्लू की वैक्सीन उचिक कोविड-19 वैक्सीन का विकल्प है.” रिसर्च के मुताबिक, फ्लू की वैक्सीन कोरोना वायरस के कारण मात्र कुछ समस्याओं के जोखिम को कम करने में सक्षम है. जो कोविड के मरीजों ने फ्लू का टीकाकरण नहीं करवाया था, उनको स्ट्रोक की संभावना 45-58 फीसद ज्यादा थी, डीप वेन थ्राम्बोसिस की 40 फीसद और सेप्सिस की 36-45 फीसद. टीकाकरण नहीं करवाने वाले लोगों को भी आईसीयू में भर्ती होने का ज्यादा जोखिम है.
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