चीन अपने सैनिक को सुपर ह्यूमन बनाना चाहता है. इस दिशा में ये देश बीजीआई कंपनी के साथ मिलकर जीन में बदलाव करने के लिए सैनिकों पर रिसर्च कर रहा है. इसके लिए 52 देशों की 80 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं के जेनेटिक डेटा का चोरी-छिपे अध्ययन कर रहा है. मीडिया में आई इस रिपोर्ट पर अमेरिकी प्रशासन ने चिंता जताई है. यूके स्थित समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 7 जुलाई को बताया कि बीजीआई ग्रुप ने ब्रेन सर्जरी से उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात हान सैनिकों की रक्षा के लिए जीन और दवाओं के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रकाशित किया है. बाइडन प्रशासन के सलाहकारों ने मार्च में चेतावनी देते हुए कहा था कि चीनी कंपनी बीजीआई ग्रुप महिलाओं के जीनोमिक डेटा का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ अध्ययन कर रहा है. चीन इससे आर्थिक और सैन्य लाभ हासिल कर सकता है.
सेना के महाबलशाली होने पर दुनिया को खतरा
चीन का जो बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट है उसका प्रयोग चीनी सैनिकों पर किया जा रहा है. खासकर उन सैनिकों पर जो भारतीय सीमा पर तैनात हैं. डीएनए डेटा विश्लेषण के आधार पर चीनी सेना और बीजीआई ग्रुप सैनिकों के जीन में बदलाव कर कर रहा है. यह बदलाव इसलिए किया जा रहा ताकि उन्हें गंभीर बीमारियों से सुरक्षित किया जा सके. यह प्रयोग अगर सफल होता है तो चीनी सैनिकों को ज्यादा ऊंचाई वाले मोर्चों पर बीमारी और सुनने की क्षमता में कमी जैसी बीमारियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. अगर ऐसा होता है तो यह भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए खतरे की घंटी है. क्योंकि जब उसकी सेना सुपर ह्यूमन यानी महाबलशाली हो जाएंगे तो उसपर काबू पाना किसी के लिए भी मुश्किल हो जाएगा.
दुनिया भर की 80 लाख प्रेग्नेंट महिलाओं का डाटा चीन ने चुराया
ऐसे समय में विश्व को यह शंका है कि कोरोना वायरस चीन के लेबोरेटरी से फैला है, तब चीन का सुपर ह्यूमन प्रोजेक्ट खतरनाक कदम है. इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन अपनी सैनिक शक्ति को अपराजेय बनाना चाहती है. सुपर ह्यूमन बनाने के लिए चीन 52 देशों की 80 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं के जेनेटिक डेटा को चोरी कर उसपर रिसर्च कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन की सेना (पीएलए) ने इस काम में चीनी कंपनी बीजीआई की मदद ली है. यह कंपनी दुनियाभर में गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्ण जांच से जुड़ी हुई है.
भविष्य में शारीरिक गुणों में बदलाव की तैयारी
प्रेग्नेंट महिलाओं के डेटा को निफ्टी (नॉन इन्वेसिव फैटल ट्रिजोमी) डेटा के तौर पर जाना जाता है. इसमें महिला की उम्र, वजन, लंबाई और जन्म स्थान की जानकारी होती है. इसमें से प्राप्त तथ्यों के आधार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए ऐसे गुणों का पता लगाया जा रहा है, जिनसे भविष्य में पैदा होने वाली आबादी के शारीरिक गुणों में बदलाव किया जा सके.
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