इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए आसान काम नहीं होता है. अमूमन इसे संतुलित बनाने पर जोर दिया जाता है. अगर सही दृष्टिकोण और वित्तीय लक्ष्य साफ हों तो एक बेहतर पोर्टफोलियो बनाया जा सकता है. पोर्टफोलियो, निवेशक के कुल निवेश किए गए एसेट्स को दिखाता है. इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो निवेशक के पास मौजूदा एसेट्स का समूह है. इसमें शेयर, बॉन्ड, रियल एस्टेट, गोल्ड वगैरह हो सकते हैं. इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट एसेट्स को एक जगह वर्गीकृत कता है. मान लीजिये अगर किसी के पास किसी निवेशक के पास म्यूचुअल फंड भी है और उसे प्रोविडेंट फंड से भी नियमित आय होती है. निवेश से जुड़े फैसले लेते समय इन अकाउंट्स को देखने की जरूरत होती है.
जोखिम को लेकर सतर्कता जरूरी
कई निवेशक लापरवाही से निवेश करते हैं. उनका निवेश लक्ष्य साफ नहीं होता. यह सही रणनीति नहीं है. निवेशक को अपने पोर्टफोलियो का विस्तार करते वक्त देखना चाहिए कि वह कितना रिस्क ले सकता है. सलाहकार इसे निवेश के फैसले लेते समय एक महत्वपूर्ण फैक्टर मानते हैं. जोखिम लेने की क्षमता अस्थिरता से निपटने में मदद करती है.
सही निवेश की पहचान करें
एक बार जोखिम की पहचान होने पर, अगला कदम निवेश की पहचान करना है. अगर किसी व्यक्ति का लक्ष्य पांच साल दूर है, तो रिटर्न की स्थिरता को देखते हुए, डेट फंड में निवेश करना चाहिए. इसी तरह, कोई व्यक्ति युवा है, तो वह ज्यादा जोखिम वाले एसेट्स जैसे प्योर इक्विटी फंड्स में निवेश कर सकता है. एक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो बनाते समय, एसेट आवंटन पर भी ध्यान देना जरूरी है. बहुत से निवेशक अपने जोश में छोटी अवधि के एसेट्स में सब कुछ निवेश कर देते हैं और अस्थिरता के दौरान उनमें घबराहट फैल जाती है. लिहाजा इस बात पर ध्यान देना जरूरी है निवेश पोर्टफोलियो अपनी छोटे, मध्यम और लंबी अवधि के निवेश लक्ष्य के मुताबिक ही तय करें.
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