वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी का त्योहार मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन ही मां गंगा, भगवान शिव की जटाओं में समाईं। भगवान शिव ने अपनी जटा से गंगा जी को सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया। इस सप्तमी को भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति का दिन भी माना जाता है।
पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा मां को मंदाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं। माना जाता है कि मां गंगा तीनों लोक में बहती हैं। इसलिए संस्कृत भाषा में मां गंगा को त्रिपथगा कहा जाता है। मां गंगा को जाह्नवी नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कलयुग के अंत तक मां गंगा पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगी और उसके साथ ही यह युग भी समाप्त हो जाएगा। उसके बाद सतयुग का उदय होगा। गंगाजल का समस्त संस्कारों में होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है। घर में अगर आर्थिक संकट है तो गंगा सप्तमी के दिन सुबह या शाम किसी भी समय चांदी या स्टील के लोटे में गंगाजल भरकर उसमें पांच बेलपत्र डालें। इसके बाद घर से शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर एक धारा से ये जल अर्पित करें। ओम नमः शिवाय का जाप करते रहें। इसके बाद महादेव को बेलपत्र अर्पित करें और प्रार्थना करें। मान-सम्मान और यश पाने के लिए गंगा सप्तमी को स्नान के बाद मां गंगा की पूजा करें। अगर मां गंगा की मूर्ति न हो तो भगवान शिव माता पार्वती की मूर्ति रखकर पूजा की जा सकती है। इसके बाद चंदन, पुष्प, प्रसाद, अक्षत, दक्षिणा आदि अर्पित करें। 108 बार ओम नमः शिवाय का जाप करें। श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम का पाठ करें।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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