संवत 2078 का आरंभ 13 अप्रैल से होगा और तभी वासन्तिक नवरात्रि भी आरंभ होंगे। चैत्र नवरात्रि मंगलवार से आरंभ होने कारण मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी। शास्त्र वचन है कि-शशि सूर्ये गजारूढा,शनिभौमै तुरगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां , बुधे नौका प्रकीर्तिता। अर्थात सोमवार को आरंभ होने वाली नवरात्रि में दुर्गा माता हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनि और मंगल को नवरात्रि आरंभ होने से दुर्गा माता घोड़े पर सवार होकर आती है। गुरु और शुक्रवार को नवरात्र आरंभ होने पर दुर्गा माता झूले पर सवार होकर आती हैंऔर बुधवार को नवरात्र आरंभ होने से दुर्गा माता नाव पर सवार होकर आती हैं। क्योंकि इस बार नवरात्र मंगलवार को आरंभ हो रहे हैं इसलिए दुर्गा माता का वाहन घोड़ा होगा।
यह होगा असर
शास्त्रों में आगे कहा गया है कि जिस वर्ष दुर्गा माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं उस वर्ष जनता बहुत व्याकुल होती है। युद्ध और उपद्रव की आशंका पूरे वर्ष बनी रहती है। गर्मी बहुत पड़ती है। कहीं-कहीं क्षत्र भंग भी हो जाता है अर्थात किसी देश अथवा प्रदेश की सरकार गिरने का डर होता है। अंतिम नवरात्रि श्री राम नवमी को होगी। उस दिन बुधवार है।
इसके बारे में भी शास्त्रों के वचन हैं कि यदि नवरात्रि की समाप्ति बुधवार को हो तो दुर्गा हाथी पर सवार होकर जाती हैं। हाथी पर जब माता जाती हैं उस वर्ष वर्षा अधिक होती है। धन्य-धान्य खूब होता है। जनता सुखी होती है, किंतु अराजक तत्व देश एवं धर्म को हानि पहुंचाने के प्रयास करते रहते हैं। हाथी पर जाने का तात्पर्य यह भी है कि देश के सत्तारूढ़ सरकार और दृढ़ होगी। जैसे हाथी मस्त होकर चलता है उसी प्रकार राजा भी निर्भय होकर शासन चलाता है।
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कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
-प्रातः 6:02 बजे से 7:38 बजे तक मेष लग्न (चर लग्न)
-7:38 बजे से 9:34 बजे तक वृषभ लग्न (स्थिर लग्न)
-मध्यान्ह 11:36 बजे से 12:24 बजे तक अभिजित मुहूर्त।
-अपराहन 14:07 बजे से 16:25 बजे तक सिंह लग्न स्थिर लग्न।
-चौघड़िया के अनुसार भी घट स्थापना के तीन मुहूर्त बहुत अच्छे हैं। प्रातः 9:11 से और अपराहन 2:56 तक चर ,लाभ और अमृत के चौघड़िया रहेंगे जो घट स्थापना के लिए अति उत्तम हैं।
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कलश स्थापना की विधि
सबसे पहले घट स्थापना के लिए मिट्टी अथवा तांबे का कलश लें। उसमें शुद्ध जल ,गंगाजल ,चावल, सुपारी, एवं कुछ पैसे डाल कर वरुण देव का ध्यान करें। किसी मिट्टी अथवा धातु के बड़े पात्र में मिट्टी अथवा रेत भरकर उसमें जौं बो दें। उसके ऊपर कलश की स्थापना करें। दुर्गा मां के चित्र की दायीं और जौ का पात्र रखकर उसमें कलश स्थापना करें। मां दुर्गा के बाएं हाथ की ओर अखंड दीपक अथवा दीपक की स्थापना करें। अर्थात जब आपके सामने मां की प्रतिमा होगी आप के बाएं हाथ की ओर अर्थात ईशान दिशा में कलश और दाएं हाथ की ओर अर्थात आग्नेय दिशा में दीपक का स्थान होता है।
नवरात्रों की प्रमुख तिथियां
-गणगौर पूजा -15 अप्रैल
-दुर्गा सप्तमी – 19 अप्रैल
-दुर्गाष्टमी -20 अप्रैल
-श्रीरामनवमी -21 अप्रैल
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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