जगन्नाथ रथ यात्रा आज से शुरू होगी, जानिए क्या है इसका इतिहास और कितनी पवित्र है ये यात्रा

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आज भगवान जगन्नाथ की पुरी रथ यात्रा निकाली जाएगी. इसको लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. पूरी जिला प्रशासन ने श्री जगन्नाथ मंदिर से श्री गुंडिचा मंदिर के बीच तीन किलोमीटर लंबे ग्रांड रोड पर प्रतिबंध लागू किया है, जहां मेडिकल इमरजेंसी के अलावा अन्य सभी गतिविधियों पर रोक रहेगी. कोरोना महामारी के वर्तमान हालात को देखते हुए इस वार्षिक धार्मिक आयोजन के सहज संचालन के लिए कम से कम 65 दस्तों की तैनाती की गई है. प्रत्येक दस्ते में 30 जवान शामिल हैं.

उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी धाम भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में लोकप्रिय है. खासतौर से इस धाम में हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं. माना जाता है कि यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का विशाल रथ खींचना, उनके भक्तों को सौभाग्य देता है. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इस साल इस आयोजन को छोटा किया गया है. बता दें कि जगन्नाथ रथ यात्रा आज से प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन होगा. 

जानिए क्या है इस यात्रा का महत्व

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाले जाने का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. रथ पुरी के जगन्नाथ धाम से निकल कर 3 किलोमीटर दूर गुण्डीचा बारी जाते हैं, जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन विश्राम करके एकादशी की तिथि पर वापस घर लौटते हैं. कहा जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धाभाव से रथ को खींचता है, उसे सौ यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है. 

जानिए क्या है रथ यात्रा का इतिहास 

कहा जाता है कि स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है. इस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी और बहन सुभद्रा के साथ रत्न सिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है.  इसके बाद 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है. मान्यता यह भी है कि इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं और उन्हें ज्वर आ जाता है. इसके बाद 15 दिनों तक उन्हें एक विशेष कक्ष में रखा जाता है. इन 15 दिनों में उन्हें मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता. 15 दिनों के बाद भक्त उनका दर्शन कर सकते हैं. 

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