हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास वर्ष का चतुर्थ मास है। इसे वर्षा ऋतु का माह भी कहा जाता है। आषाढ़ माह को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। यह मास भगवान श्री हरि विष्णु को बहुत प्रिय है। इस माह में अनेक उत्सव एवं त्योहारों का आयोजन होता है। इस माह दान का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि यह माह जीवन में सकारात्मकता लेकर आता है। इस माह किया गया दान-पुण्य बहुत फलदायक माना जाता है।
आषाढ़ माह के मुख्य त्योहार में देवशयनी एकादशी है। इस दिन से देवी-देवता चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। इसे चातुर्मास भी कहा जाता है। चार माह तक सभी मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। चार माह बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवता शयन से उठते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसी माह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आयोजित की जाती है। आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ अमावस्या को स्नान, दान-पुण्य, पितृ कर्म के लिए बहुत पुण्य फलदायी माना जाता है। आषाढ़ अमावस्या पर यम की पूजा की जाती है। आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्र भी आते हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। इस पावन दिन को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। आषाढ़ी पूर्णिमा पर दान अवश्य करना चाहिए। आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन में खुशहाली आती है। आषाढ़ मास में खड़ाऊं, छाता, नमक तथा आंवले का दान करना चाहिए।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
Source link