डिफॉल्ट प्रमोटर्स को IBC के तहत क्या अपनी फर्म को काफी छूट के साथ खरीदने की इजाजत होनी चाहिए?

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शिवा इंडस्ट्रीज एंड होल्डिंग लोन सेटलमेंट के मामले में इस वक्त गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. इसका कारण है कि बैंकों ने इस ग्रुप होल्डिंग कंपनी के विरुद्ध दिवालिया कार्यवाही वापस लेने पर अपनी सहमति दी है. यानी IDBI बैंक के नेतृत्व में भारतीय लेनदारों ने IBC के अंतर्गत शिवा इंडस्ट्रीज के एकमुश्त निपटान प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.


जिसके बाद लेनदारों को 5 करोड़ रुपये अग्रिम नकद के रूप में मिलेंगे. लेनदारों का कंपनी पर 4 हजार 863 करोड़ रुपये का बकाया है. लेकिन इसमें से उसे सिर्फ 318 करोड़ रुपये ही मिल पाएगा. इस तरह लेनदारों को अपने बकाये पर करीब 93.5% का नुकसान उठाना होगा.


नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की चेन्नई पीठ ने शुक्रवार को ऋणदाताओं से दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) 2016 की धारा 12 ए के तहत शिवा इंडस्ट्रीज के प्रमोटर द्वारा किए गए एकमुश्त निपटान (ओटीएस) प्रस्ताव के पीछे के तर्क को स्पष्ट करने के लिए कहा है.


कैपस्टोन लीगल के मैनेजिंग पार्टनर आशीष सिंह ने abp न्यूज को बताया, "हालांकि वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) में प्रवेश करने में कोई विशेष रोक नहीं है, लेकिन विलफुल डिफॉल्टर के साथ कोई भी व्यवस्था निश्चित रूप से आईबीसी की धारा 29 ए की भावना के खिलाफ है."


ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (IBC)  की धारा 29A के अनुसार, एक दिवालिया, एक विलफुल डिफॉल्टर, या एक व्यक्ति जो एक प्रमोटर था या अन्य शर्तों के साथ कॉर्पोरेट देनदार के प्रबंधन में था उसे संबंधित दिवालिया कंपनी के लिए बोली लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.


गौरतलब है कि सी. शिवशंकरन की ओर से स्थापित शिवा इंडस्ट्रीज एंड होल्डिंग्स लिमिटेड के लेनदारों ने आईबीसी 2016 की धारा 12 ए के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की चेन्नई पीठ में एक याचिका दायर की है. इसमें कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया को वापस लेने की बात कही गई है.


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