मेष संक्रांति को त्योहारों का आधार माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव विशिष्ट तरह का संक्रमण करते हैं। मेष संक्रांति मेष राशि में भगवान सूर्यदेव के संक्रमण के दिन को संदर्भित करती है। मेष संक्रांति के पहले दिन से सौर कैलेंडर के नववर्ष का प्रारंभ होता है। मेष संक्रांति के पहले दिन को नववर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
सूर्यदेव की स्तुति से यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है। मेष संक्रांति में सूर्यदेव की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस दिन स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें और गायत्री मंत्र का जाप करें। दान करें। इस दिन गेहूं, गुड़ और चांदी की वस्तु दान करना शुभ माना जाता है। मेष संक्रांति को स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण करें। तांबे के पात्र या लोटे में जल, अक्षत, लाल पुष्प रखकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। उत्तर भारत के लोग इसे नए साल के रूप में मनाते हैं और इसे सतुआ संक्रांति भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में मेष संक्रांति का काफी महत्व है। इस दिन से गर्मी के मौसम की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना भी की जाती है और उन्हें सत्तू का भोग लगाया जाता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। मेष संक्रांति पर पवित्र नदी में स्नान करने और दान पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस दिन दान-पुण्य करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। मत्स्यपुराण में भी संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है। संक्रांति के दिन गंगा या पवित्र नदी में स्नान पुण्यदायक माना गया है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
Source link