नेपाल में प्रचंड के नेतृत्व वाली पार्टी के समर्थन वापस लेने से ओली सरकार ने खोया बहुमत

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काठमांडू. नेपाल में पुष्पकमल दहल "प्रचंड" के नेतृत्व वाली सीपीएन (माओवादी सेंटर) द्वारा बुधवार को सरकार से आधिकारिक रूप से समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रतिनिधि सभा में अपना बहुमत खो दिया.


 


पार्टी के एक वरिष्ठ नेता गणेश शाह के अनुसार सरकार से समर्थन वापस लेने के फैसले की जानकारी देते हुए पार्टी ने संसद सचिवालय को इस आशय का एक पत्र सौंपा. उन्होंने कहा कि माओवादी सेंटर के मुख्य सचेतक देव गुरुंग ने संसद सचिवालय में अधिकारियों को पत्र सौंपा.


 


पत्र सौंपने के बाद गुरुंग ने संवाददाताओं को बताया कि पार्टी ने ओली सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया, क्योंकि सरकार ने संविधान का उल्लंघन किया. उन्होंने कहा कि सरकार की हालिया गतिविधियों ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न किया है.


 


समर्थन वापस लेने के बाद ओली सरकार ने प्रतिनिधि सभा में अपना बहुमत खो दिया है. प्रचंड के नेतृत्व वाली पार्टी द्वारा सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला ऐसे समय आया है जब ओली ने दो दिन पहले घोषणा की थी कि वह 10 मई को संसद में विश्वासमत प्राप्त करेंगे.


 


माओवादी सेंटर के निचले सदन में कुल 49 सांसद हैं. चूंकि सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के कुल 121 सांसद हैं प्रधानमंत्री ओली के पास 275 सदस्यीय सदन में अपनी सरकार बचाने के लिए 15 सांसद कम हैं.


 


इस बीच, प्रधानमंत्री ओली बुधवार को मुख्य विपक्षी नेता नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के बूढानीलकंठ स्थित आवास पहुंचे ताकि सरकार बचाने के लिए उनका समर्थन मिल सके. नेपाली कांग्रेस के करीबी सूत्रों के मुताबिक दोनों नेताओं ने देश के नवीनतम राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की.


 


सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता के लिए खींचतान के बीच नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा सदन भंग करने के चलते नेपाल में गत वर्ष 20 दिसम्बर को राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया था. राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर 30 अप्रैल और 10 मई को फिर चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी.


 


सदन को भंग करने के ओली के कदम का उनके प्रतिद्वंद्वी ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली पार्टी ने काफी विरोध किया. फरवरी में, शीर्ष अदालत ने प्रतिनिधि सभा को बहाल कर दिया जो प्रधानमंत्री ओली के लिए एक झटका था.



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