बांस के बल्ले को MCC ने दिखाया ठेंगा, कहा-‘ये क्रिकेट रूल्स के खिलाफ’

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नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले इस बात का सुझाव दिया गया था क्रिकेट के खेल में बांस के बल्लों का इस्तेमाल किया जाए क्योंकि इससे बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं, लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट के नियमों की देखरेख करने वाली संस्था  मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) को ये सलाह पसंद नहीं आई.

किसने दिया बांस के बल्ले का आइडिया?

बांस के बल्ले पर रिसर्च करने वाले दर्शील शाह (Darshil Shah) और बेन टिंकलेर डेविस ने किया है. शाह ने ‘द टाइम्स’ से कहा, ‘एक बांस के बल्ले से यॉर्कर गेंद पर चौका मारना आसान होता है क्योंकि इसका स्वीट स्पॉट बड़ा होता है. यॉर्कर पर ही नहीं बल्कि हर तरह के शॉट के लिए यह बेहतर है.’
 

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‘बांस का बल्ला होगा कम खर्चीला’

क्रिकेट में कश्मीर या इंग्लिश विलो (खास तरह के पेड़ की लकड़ी) के बैट का इस्तेमाल होता है लेकिन इंग्लैंड के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (University of Cambridge) के एक रिसर्च में पता चला है कि बांस के बने बल्ले (Bamboo Bats) का इस्तेमाल कम खर्चीला होगा और उसका ‘स्वीट स्पॉट’ भी बड़ा होगा. बल्ले में स्वीट स्पॉट बीच के हिस्से से थोड़ा नीचे लेकिन सबसे नीचले हिस्से से ऊपर होता है और यहां से लगाया गया शॉट दमदार होता है.

‘बांस ज्यादा उपलब्ध है’

गार्जियन न्यूजपेपर के मुताबिक, ‘इंग्लिश विलो की आपूर्ति के साथ समस्या है. इस पेड़ को तैयार होने में लगभग 15 साल लगते हैं और बल्ला बनाते समय 15 फीसदी से 30 फीसदी लकड़ी बर्बाद हो जाती है.’ शाह का मानना है कि बांस सस्ता है और काफी मात्रा में उपलब्ध है. यह तेजी से बढ़ता है और टिकाऊ भी है. बांस को उसकी टहनियों से उगाया जा सकता है और उसे पूरी तरह तैयार होने में 7 साल लगते हैं.

MCC ने रिसर्च को दिखाया ठेंगा

मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) ने बांस के बल्ले वाले आइडिया को ठेंगा दिखाते हुए कहा कि ये ‘मौजूदा नियमों को खिलाफ’ है. रुल 5.3.2 के तहत ‘बैट का ब्लेड सिर्फ लकड़ी का होना चाहिए.’ बांस के बल्ले का इस्तेमाल करने से पहले नियमों में बदलाव करना होगा, क्योंकि बांस को ‘घास’ की कैटेगरी में रखा जाता है.

 

 

‘नियम बदलने में सावधानी जरूरी’

रूल्स बदने को लेकर एमसीसी ने अपने बयान में कहा, ‘नियमों में कोई भी संभावित संशोधन पर सावधानी से ध्यान देने की जरूरत है, खासकर बैट के कॉन्सेप्ट में जो बड़ी ताकत पैदा करता है. क्लब इस मसले पर काम कर रहा है कि बल्ला जरूरत से ज्यादा मजबूत न हो. साल 2008 और 2017 में बैट के साइज और मैटेरियल को सीमित किया गया था.’

 

 

‘अगली मीटिंग में होगी चर्चा’

मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) ने अपने बयान में ये भी कहा है कि अगली कानून उप समिति की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की जाए, बयान के मुताबिक, ‘बल्ला कब तक टिकेगा ये एमसीसी के लिए उचित मुद्दा होगा. रिसर्च करने वाले ये बात रहे हैं कि टिकाउ बांस चीन में काफी मात्रा में उगता है और इसके उत्पादन पर कम खर्च आएगा. इस वजह से बांस का बल्ला विलो का विकल्प हो सकता है.’



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