भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को मिला पुलित्जर पुरस्कार, सामने लाईं थीं चीन के डिटेंशन कैंपों की सच्चाई

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भारतीय मूल की महिला पत्रकार मेघा राजगोपालन को पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. इसे पत्रकारिता जगत में सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट्स के जरिए दुनिया के सामने चीन के डिटेंशन कैंपों की सच्चाई रखी थी. उन्होंने सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण कर बताया था कि कैसे चीन लाखों उइगुर मुसलमानों को कैद कर रखा है. वहीं, अमेरिका की डार्नेला फ्रेजियर को ‘पुलित्जर स्पेशल साइटेशन’ का अवार्ड मिला. उन्होंने मिनेसोटा में उस घटना को रिकॉर्ड किया था, जिस दौरान अश्वेत-अमेरिकन जॉर्ज फ्लॉएड की जान चली गई थी. इसके बाद दुनियाभर में नस्लीय हिंसा के विरोध में भारी प्रदर्शन हुए थे.

मेघा राजगोपालन के साथ इंटरनेट मीडिया बजफीड न्यूज के दो बड़े पत्रकारों को भी पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. भारतीय मूल के पत्रकार नील बेदी को स्थानीय रिपोर्टिंग कैटेगरी में पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है. उन्होंने फ्लोरिडा में सरकारी अधिकारियों के बच्चों की तस्करी को लेकर टंपा बे टाइम्स के लिए इंवेस्टीगेशन स्टोरी की थी. उन्होंने इस स्टोरी के जरिए कई अहम खुलासे किए थे. मेघा राजगोपालन ने अपने पिता के बधाई संदेश को ट्विटर पर शेयर किया है. इसमें उनके पिता ने उन्हें पुलित्जर पुरस्कार मिलने की बधाई दी है. उन्होंने लिखा, “मम्मी ने मुझे अभी ये मैसेज फॉरवर्ड किया है. पुलित्जर पुरस्कार. बहुत बढ़िया.” मेघा ने रिप्लाई किया, “थैंक्यू.” उनके पिता का यह मैसेज अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.  

साल 1917 में पहली बार दिया गया पुरस्कार 

पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार को सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है. सबसे पहले यह पुरस्कार साल 1917 में दिया गया था. इसे अमेरिका में पत्रकारिता के क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी माना जाता है. इस पुरस्कार समारोह का आयोजन 19 अप्रैल, 2021 को होना था लेकिन कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इसे जून तक के लिए स्थगित कर दिया गया था. साल 2020 में भी विजेताओं की घोषणा दो हफ्ते की देरी से की गई थी.

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