राम के हाथों मरने से बचने के लिए लक्ष्मण को छोड़नी पड़ी थी अयोध्या!

0
19
Facebook
Twitter
Pinterest
WhatsApp

Ramayan :  वाल्मीकि रामायण के अनुसार उत्तरकांड के समय राम रावण को हराकर अयोध्या का राजपाट संभाल चुके थे. एक बार महर्षि दुर्वासा श्रीराम से मिलने आते है. इस समय श्रीराम मृत्यु के देवता यम के साथ किसी गंभीर मंथन में व्यस्त थे. बात शुरू होने से पहले यम ने श्रीराम को कह दिया था कि उनके बीच हो रही बातचीत किसी को नहीं पता चलनी चाहिए. ऐसा हुआ या बातचीत के दरमियान कोई आकर देख या सुन लेता है तो उसे मार देना होगा. इस बात पर हामी भरते हुए रामजी अपने सबसे भरोसमंद भाई लक्ष्मण को दरवाजे के बाहर खड़ा कर देते हैं.


इधर, इसी समय आए क्रोध के लिए मशहूर ऋषि दुर्वासा कक्ष में जाने की इच्छा जताते है तो लक्ष्मण असमंजस में पड़ जाते हैं, वे उनसे अनुरोध करते हैं कि राम की बात ख़त्म हो जाने दें, लेकिन दुर्वासा प्रतीक्षा कराए जाने से क्रोधित हो जाते हैं. कहते हैं कि अगर लक्ष्मण ने राम को उनके आगमन की सूचना नहीं दी तो वे पूरी अयोध्या को श्राप दे देंगे. धर्मसंकट में पड़े लक्ष्मण सोचते है कि पूरी अयोध्या को बचाने के लिए उनका अकेला मरना सही है और मजबूर होकर वह अंदर रामजी के पास जाकर ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दे देते हैं. इसी समय राम यम के साथ वार्तालाप रोक कर तुरंत ऋषि की सेवा के लिए चल देते हैं. 


गुरु वशिष्ठ की सलाह से बचती है जान
राम की आवभगत से प्रसन्न होकर दुर्वासा लौट जाते हैं, इसके बाद राम को यम से कही अपनी बात याद आती है. राम अपने पुत्र जैसे भाई को नहीं मारना चाहते हैं. लेकिन यम को दिए वचन के चलते वे परेशानी में पड़ जाते हैं. दुविधा के हल के लिए गुरु वशिष्ठ को बुलाया जाता है. वशिष्ठ, लक्ष्मण को आदेश देते है कि वे राम को छोड़ चले जाएं, इस तरह का बिछड़ना मृत्यु के समान ही है. इसके बाद लक्ष्मण पिता समान भाई को छोड़कर जंगल में सरयू तट पर रहने चले जाते हैं.



Source link

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here