मुंबई: रिजर्व बैंक ने सोमवार को बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और भुगतान प्रणाली भागीदारों से कहा है कि वह उसके अप्रैल 2018 में आभासी मुद्रा के बारे में जारी सर्कुलर को निरस्त समझें और ग्राहकों को संदेश में उसका उल्लेख नहीं करें. इस सर्कुलर को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
रिजर्व बैंक ने यह सर्कुलर 6 अप्रैल 2018 को जारी किया था. इसमें कहा गया था कि उसके नियमन के दायरे में आने वाली इकाइयों को आभासी मुद्राओं से संबंधित किसी भी तरह की सेवायें देने से प्रतिबंधित किया जाता है. इनमें आभासी मुद्राओं की खरीद फरोख्त से संबंधित खातों में आने जाने वाली राशि संबंधी सेवाओं पर भी रोक लगाने को कहा गया था.
रिजर्व बैंक ने इस संबंध में सोमवार को कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्टों के जरिये उसके संज्ञान में आया है कि कुछ बैंक और नियमन इकाइयां अपने ग्राहकों को 6 अप्रैल 2018 को जारी सर्कुलर का संदर्भ देते हुये आभासी मुद्रा में लेनदेन से आगाह कर रहे हैं.
केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि इस सर्कुलर को 04 मार्च 2020 को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया था. ‘‘माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुये यह सर्कुलर उच्चतम न्यायालय के फैसले के दिन से वैध नहीं रह गया है, इसलिये इसका संदेशों में जिक्र अथवा संदर्भ नहीं दिया जाना चाहिये.’’
रिजर्व बैंक ने यह सर्कुलर सोमवार को सभी वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों, भुगतान बैंकों, लघु वित्त बैंकों, गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और भुगतान प्रणाली भागीदारों के नाम जारी किया. रिजर्व बैंक ने कहा, हालांकि, बैंक मानक संचालन नियमनों के तहत अपने ग्राहक को जानो (केवाईसी), मनी लांड्रिंग रोधी, आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला (सीएफटी) और मनी लांड्रिग रोधी कानून के तहत नियमन में आने वाली इकाइयों के दायित्व के तहत ग्राहकों की जांच परख प्रक्रिया को जारी रख सकते हैं.
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