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फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस तिथि को आंवला एकादशी नाम से भी जाना जाता है। आंवले को भगवान श्री हरि विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। इस व्रत में भगवान श्री हरि विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की विधि-विधान से पूजा कर उपवास रखा जाता है। यह व्रत रोगों से मुक्ति प्रदान करता है। इस दिन आंवले का उपयोग करने से भगवान श्री हरि विष्णु प्रसन्न होते हैं।
मान्यता है कि जो प्राणी मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में पुष्य नक्षत्र में जो एकादशी आती है इसका व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी नाम से जाना जाता है। आंवले के वृक्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इसका फल भगवान विष्णु को प्रिय है। इस फल को खाने से तीन गुना शुभ फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत से एक दिन पहले भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करते हुए शयन करना चाहिए। व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करें। तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प लें। एकादशी व्रत भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा पाने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है। आंवले का एक नाम आमलकी भी है और इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा के चलते ही इस एकादशी को आमलकी एकादशी नाम से जाना जाता है। आंवले के हर हिस्से में भगवान का वास माना जाता है। इसके मूल में श्री हरि विष्णु, तने में भगवान शिव और ऊपर के हिस्से में भगवान ब्रह्मा का वास माना गया है। इस व्रत में भगवान की पूजा के पश्चात आंवले के वृक्ष की पूजा करें। रात्रि में भागवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करा दक्षिणा दें।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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