विलक्षण प्रतिभा के धनी थे गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर 

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महान संगीतकार, चित्रकार, लेखक, कवि और विचारक गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर पहले भारतीय, पहले एशियाई और पहले गैर यूरोपीय थे जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

उन्होंने छह साल की उम्र में पहली कविता लिखी। 16 साल की उम्र में लघु कथाएं और नाटक लिखे। उनके पिता चाहते थे कि वह बैरिस्टर बनें। इसलिए ब्रिटेन, इंग्लैंड में वह पढ़ने गए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को किंग जॉर्ज पंचम द्वारा नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध स्वरूप उन्होंने इस उपाधि को त्याग दिया। उन्होंने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखे। भारत के लिए जन गण मन और बांग्लादेश के लिए आमार सोनार बांग्ला। श्रीलंका का राष्ट्र गान भी गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखा गया। पहली बार गांधी जी को महात्मा कहने का श्रेय उन्हीं को जाता है। गीतांजलि की रचना के लिए 1913 में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। गीतांजलि को दुनिया की कई भाषाओं में प्रकाशित किया गया। इसके साथ ही लोकप्रिय कहानियां काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्ट मास्टर लिखीं, जिन्हें खूब पसंद किया गया। उपन्यास में गोरा, मुन्ने की वापसी, अंतिम प्यार और अनाथ आदि प्रमुख हैं। उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियों में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। वह महान संगीतकार भी थे, उन्होंने दो हजार से अधिक गीतों की रचना की। उन्होंने सभी प्रकार की शैलियों पर काम किया। उपन्यास, लघु कथाएं, कविताएं, निबंध, छंद, नाटक, गीत और आत्मकथाएं, यात्रा वृतांत आदि लिखे। 

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