विश्वास मत हासिल करने में असफल रहें नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, केवल 93 सांसदों ने ओली के पक्ष में वोट किया

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डिजिटल डेस्क, काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सोमवार को अपना विश्वास मत हासिल करने में नाकामयाब रहें। सदन में मौजूद 232 सांसदों में से 93 वोट ओली के पक्ष में गए, जबकि 124 वोट उनके खिलाफ पड़े। 15 सांसद न्यट्रल रहे। विश्वास मत हासिल करने के लिए 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में ओली को कम से कम 136 वोट चाहिए थे, क्योंकि चार सदस्य अभी निलंबित हैं।

नेपाली कांग्रेस 61 और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) 49 वोटों को कंट्रोल करते हैं। इन दोनों ने ओली के विश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। वहीं जनता समाज पार्टी, जिसके पास 32 वोट हैं, वो डिवाइडेड दिखी। महंत ठाकुर के नेतृत्व वाला गुट न्यूट्रल रहा, जबकि उपेंद्र यादव के नेतृत्व वाले समूह ने ओली के खिलाफ मतदान किया।

इसके बाद, विधानसभा अध्यक्ष अग्नि सपकोटा ने केपी ओली शर्मा के विश्वास मत हासिल करने में असफल रहने की घोषणा की। अब सदन की अगली बैठक गुरुवार के लिए निर्धारित की गई है। ओली के विश्वास मत हासिल करने में असफल रहने के बाद अब राष्ट्रपति को नई सरकार बनाने के लिए अनुच्छेद 76 (2) को लागू करना होगा।

अनुच्छेद 76 (2) कहता है, जहां किसी भी पार्टी के पास प्रतिनिधि सभा में स्पष्ट बहुमत नहीं होता है, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को प्रतिनिधि सभा के सदस्य के रूप में नियुक्त करेगा जो दो या अधिक दलों के समर्थन से बहुमत की कमान संभाल सकता है। ये नेपाली कांग्रेस को माओइस्ट सेंटर के समर्थन से सरकार बनाने का मौका देगा। लेकिन नई सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के पास लगभग 26 सीटें कम हैं।

यदि अनुच्छेद 76 (2) के तहत सदन सरकार देने में विफल रहता है या इस प्रावधान के तहत नियुक्त कोई प्रधानमंत्री नियुक्ति से 30 दिनों के भीतर विश्वास मत जीतने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 76 (3) को लागू करेगा। अनुच्छेद 76 (3) कहता है, क्लॉज (2) के तहत प्रधानमंत्री की नियुक्ति नहीं होने या नियुक्त प्रधानमंत्री के 30 दिनों के भीतर विश्वास मत हासिल करने में असफल रहने की स्थिति में राष्ट्रपति प्रतिनिधि सभा में सबसे अधिक सदस्य वाली पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है। वर्तमान में ओली ऐसी पार्टी के नेता है जिनके पास सदन में सबसे अधिक सदस्य है।

यदि ओली को अनुच्छेद 76 (3) के अनुसार नियुक्त किया जाता है, तो उन्हें नियुक्ति की तारीख से 30 दिनों के भीतर विश्वास मत साबित करना होगा। अगर ओली इसमें फिर से फेल हो जाते हैं तो एक बार फिर अनुच्छेद 76 (2) के तहत राष्ट्रपति ऐसे किसी सदस्य को नियुक्त कर सकते हैं जो ऐसा आधार प्रस्तुत करें कि वह प्रतिनिधि सभा में विश्वास हासिल कर सकता है। इस तरीके से नियुक्त प्रधानमंत्री को भी 30 दिनों के भीतर विश्वास मत हासिल करना होगा। ऐसा करने में असफल रहने पर सदन को भंग कर दिया जाएगा।

बता दें कि अनुच्छेद 76 (2) के तहत माओइस्ट सेंटर के समर्थन से फरवरी 2018 में ओली को प्रधानमंत्री चुना गया था। लेकिन उनकी यूएमएल और दहल के माओइस्ट सेंटर के बीच विलय के बाद, उनकी सरकार ने अनुच्छेद 76 (1) के तहत गठित सरकार का दर्जा प्राप्त कर लिया था, क्योंकि एकजुट नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) ने सदन में आसानी से बहुमत हासिल कर लिया था। हालांकि बाद में माओइस्ट सेंटर ने अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे सरकार अल्पमत में आ गई।

सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) में सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल (प्रचंड), माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनाल जैसे वरिष्ठ नेता पीएम ओली पर न केवल सरकार बल्कि पार्टी को भी अपने मन मुताबिक चलाने के आरोप लगाते रहे थे। वास्तव में ओली और प्रचंड की पार्टियों ने सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया था और दोस्ती की मिसाल यह थी कि सरकार बनते ही दोनों पार्टियों का विलय हो गया था। लेकिन यह दोस्ती ज़्यादा वक्त नहीं चली।

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