हर माह शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय को समर्पित स्कंद षष्ठी का पावन व्रत रखा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की विधिविधान से पूजा करने का विधान पुराणों में भी कहा गया है। यह व्रत विशेष रूप से फलदायी है। यह तिथि भगवान कार्तिकेय को अति प्रिय है। इसी दिन उन्होंने दैत्य ताड़कासुर का वध किया था और इसी तिथि को भगवान कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने।
इस व्रत का पालन करने से सभी तरह के भय-दुख-रोग दूर हो जाते हैं। संतान के कष्टों को दूर करने और सुख की कामना के लिए यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। संतान पक्ष की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। मयूर की सवारी करने वाले कुमार कार्तिकेय दक्षिण भारत में मुरुगन नाम से प्रसिद्घ हैं। स्कन्दपुराण के मूल में कुमार कार्तिकेय हैं। स्कन्द पुराण में भगवान कार्तिकेय के 108 नामों का उल्लेख है। भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल पसंद हैं। इसलिए इस षष्ठी को चंपा षष्ठी भी कहा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन स्कंददेव पर दही में सिंदूर मिलाकर अर्पित करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति अच्छी बनी रहती है। इन दिन दान करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन तेल का सेवन नहीं करना चाहिए। बाजरे की रोटी एवं बैंगन के भुर्ते का प्रसाद वितरित किया जाता है। रात्रि में भूमि पर शयन करना चाहिए।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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