कोरोना की पहली लहर की मार से बैंक और उद्योग जगत अभी निकलने की कवायद में लगा हुआ था। लेकिन इस कोशिशों को दूसरी लहर ने और गहरे संकट में बदल दिया है। इसकी बार आम लोगों और छोटी कंपनियों के साथ बैंकों पर भी पड़ी है। वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही के बैंकों के परिणाम के आकलन के मुताबिक समीक्षाधीन तिमाही में दूसरी लहर की वजह से ईएमआई में चूक बढ़ी है जिससे बैंकों का फंसा कर्ज यानी एनपीए बढ़ा है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस अवधि में सरकारी बैंकों की एनपीए ज्यादा बढ़ा है। समीक्षाधीन अवधि में निजी बैंकों का एनपीए भी बढ़ा है लेकिन सरकारी के मुकाबले उनकी स्थिति बेहतर है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि लगातार दूसरे महीने ऑटो- डेबिट में डिफॉल्ट बढ़ा है। ऑटो डेबिट वह प्रक्रिया है जिसके तहत आपके खाते कर्ज की ईएमआई या क्रेडिट कार्ड और अन्य तरह के भुगतान का राशि तय समय पर कट जाती है। इसने बैंकों के साथ उपभोक्ताओं की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं।
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निजी बैंकों में डिफॉल्ट के मामले बढ़े
सरकारी बैंकों का एनपीए भले ही निजी क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले ज्यादा हो लेकिन ईएमआई चूक यानी डिफॉल्ट के मामले निजी बैंकों में करीब तीन गुना अधिक हैं। सरकारी बैंकों में डिफॉल्ट के मामले 7.1 फीसदी हैं। जबकि निजी बैंकों में डिफॉल्ट के मामलों में 20.8 फीसदी का उछाल आया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह सरकारी बैंकों का सख्त मानक है जो गंभीरत जांच-पड़ताल के बाद ही कर्ज देते हैं। जबकि निजी बैंक सरकारी के मुकाबले आसानी से कर्ज बांटते हैं।
क्यों बढ़ रहे चूक के मामले
कोरोना की पहली लहर में छंटनी और वेतन कटौती से उपभोक्ता और उद्योग अभी ठीक से संभले भी नहीं थे कि दूसरी लहर का सामना करना पड़ा। इससे कई राज्यों में लॉकडाउन लगाना पड़ा। कंपनियों ने फिर छंटनी शुरू कर दी। ऐसी स्थिति में नौकरी छूटने की वजह से कई लोग ईएमआई देने में असफल हो रहे हैं। वहीं लॉकडाउन से ज्यादातर छोटी कंपनियों का कोरोबार बंद हो गया। जिससे वह ईएमआई चुकाने में असमर्थ हो गई हैं।
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आम उपभोक्ता-छोटी कंपनियों से ज्यादा चूक
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की की दूसरी लहर ने आम लोगों के साथ छोटी कंपनियों के लिए संकट ज्यादा बढ़ा दिया है। समीक्षाधीन अवधि में डिफॉल्ट के जो मामले आ रहे हैं उनमें व्यक्तिगत कर्जदाता और छोटी कंपनियों की ओर से अधिक है। इसे दखते हुए बैंकों ने कर्ज आसानी से देना बंद कर दिया है। निजी बैंकों को छोड़कर ज्यादातर सरकारी बैंकों के कर्ज की रफ्तार घटी है। यहां तक कि पीएनबी और बैंक ऑफ इंडिया की कर्ज वृद्धि नकारात्मक रही है। जबकि अन्य सरकारी बैंकों की कर्ज वृद्धि 10 फीसदी से नीचे रही है।
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