टेक्सटाइल सेक्टर की एमएसएमई के सामने प्रोडक्शन का संकट, कमाई पर पड़ेगी भारी चोट 

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टेक्सटाइल सेक्टर में काम करने वाली एमएसएमई कोविड संक्रमण की पहली लहर से उबरने लगी थी और उनका प्रोडक्शन के प्री-कोविड लेवल के 90 फीसदी तक पहुंच गया था लेकिन अब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने उनके सामने  अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है. धागे की कीमतों में बढ़ोतरी ने एमएसएमई को राहत दी थी और इसमें 80 फीसदी तक रिकवरी दिखाई दे रही थी. पिछले साल दिसंबर तक ये इकाइयां प्री-कोविड प्रोडक्शन लेवल के 90 फीसदी तक पहुंच चुकी थीं. लेकिन अब कोविड की दूसरी लहर को काबू करने के लिए लगे लॉकडाउन, पाबंदी, नाइट कर्फ्यू, वीकेंड कर्फ्यू ने देश भर में ऐसी इकाइयों के सामने संकट खड़ा कर  दिया है. इन्हें अपनी प्रोडक्शन कैपिसिटी में फिर गिरावट की आशंका सताने लगी है. 


लॉकडाउन और पाबंदियों से प्रोडक्शन को लगेगा झटका


टेक्सटाइल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अशोक जुनेजा के मुताबिक इस बार के प्रतिबंधों से अभी यह तो अंदाजा लगाना मुश्किल होगा कि यह कितना असर डालेगा. लेकिन अगर इसने कारोबार पर असर डाला तो इसका खड़ा होना लंबे  समय तक मुश्किल होगा. क्योंकि पिछले साल दिसंबर तक प्रोडक्शन क्षमता 80 फीसदी तक पहुंच गई थी. अब बाधाएं आईं तो बहुत बुरा असर होगा. 


टेक्सटाइल इंडस्ट्री का जीडीपी में बड़ा योगदान 


देश की जीडीपी में टेक्सटाइल और अपैरल इंडस्ट्री की  दो फीसदी हिस्सेदारी है. इसके साथ ही देश के निर्यात में यह 12 फीसदी योगदान देती है.  कोविड के दौरान भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री दुनिया की सबसे बड़ी पीपीई किट मेकर बन कर उभरी थी.  भारत में 600 कंपनियों को पीपीई किट मेकर्स के तौर पर सर्टिफाई किया गया था.  जुनेजा का कहना है कि उम्मीद है कि इस बार टेक्सटाइल सेक्टर में काम  करने वाली एमएसएमई समझदारी से काम लेंगी और प्रवासी मजदूरों के पलायन को रोकने में कामयाब रहेंगी. उद्यम आधार पोर्टल के मुताबिक सितंबर 2015 से लेकर जून 2020 तक 6,51,512 एमएसएमई रजिस्टर्ड हुए थे. उनमें  से 4,28,864 एमएसएमई टेक्सटाइल सेक्टर से ही जुड़े थे.


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