नेपाल में जारी राजनीतिक घमासान के बीच भारत सरकार की ओर से महत्वपूर्ण बयान आया है. भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि नेपाल का वर्तमान राजनीतिक हलचल उसका आंतरिक मामला है और इसमें भारत कोई दखल नहीं देगा. हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने संसद के निचले सदन को भंग करने का अनुरोध राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से किया था जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया. इस घटनाक्रम के बाद नेपाल की सत्ताधारी पार्टी में भी घमासान मचा हुआ है और विपक्ष हमलावर है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है.
लोकतांत्रिक प्रकिया के तहत मामले को निपटाए नेपाल
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, प्रतिनिध सभा को भंग करना और सत्ताधारी पार्टी में कलह नेपाल का आंतरिक मामला है और पड़ोसी देश को इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सुलझाना चाहिए. बागची ने कहा, हमारी नेपाल के हालिया घटनाक्रम पर नजर है. हमारा मानना है कि यह नेपाल का आंतरिक मामला है और नेपाल को खुद अपने घरेलु परिस्थितियों के अनुसार सुलझाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत नेपाल को उसकी प्रगति, शांति, स्थिरता और विकास की यात्रा में समर्थन देता रहेगा. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि हम नेपाल को एक पड़ोसी और मित्र के रूप देखते हैं जिससे उन्हें अपने घरेलू ढांचे और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के तहत निपटना है.
12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा
उल्लेखनीय है कि नेपाल के विपक्षी गठबंधन ने राष्ट्रपति द्वारा प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की है. इससे पहले राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की सिफारिशों पर सदन को भंग कर दिया था. ओली की सरकार सदन में विश्वास मत में हारने के बाद अल्पमत में आ गई थी. नेपाल के विपक्षी दलों के पूर्व सांसद रविवार और सोमवार को एकत्र हुए थे तथा उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए शेर बहादुर देउबा के दावे के समर्थन में अपने हस्ताक्षर सौंपा था. राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर शनिवार को पांच महीने में दूसरी बार 275 सदस्यीय सदन को भंग कर दिया था तथा 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी.
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