संकट के सिपाही : दूसरों के लिए अपनी तकलीफ भूल सेवा में जुटे कोरोना योद्धा

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संकट के समय जो काम आए वही सच्चा मित्र है। यह एक कहावत है। लेकिन आज के संदर्भ में हम देखें तो इसमें एक बात और जुड़ जाती है कि संकट के समय जो काम आए वह मित्र तो है ही, सिपाही भी है। इसलिए  कि यह एक संकट काल है। आज कुछ और ऐसे ही सिपाहियों की दास्तान जो इस दौर में सिपाही बने हुए हैं। 

घर में ही बना लिया था दफ्तर, पत्नी बच्चों से कहती थीं बाहर गए हैं पापा

डॉ. सुमित वार्ष्णेय. दीनदयाल, अलीगढ़ 


होली हो या दीपावली… या फिर कोई और त्योहार। डॉ. सुमित वार्ष्णेय अपनी धुन के पक्के  हैं। कोरोना संक्रमण के शुरुआती समय से लेकर अब तक करीब तीन सौ दिनों से कोविड अस्पताल दीनदयाल संयुक्त चिकित्सालय की लैब में आरटीपीसीआर व सीबीनेट के जरिये कोरोना की जांच करने में जुटे हैं। उनके साथ 14 लोगों का स्टाफ भी लगातार काम कर रहा है। 12 जुलाई 2020 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के आठ मंडलों में आठ पैथोलॉजी का शुभारंभ ऑनलाइन किया था। दीनदयाल अस्पताल की लैब ने रविवार तक एक लाख 80 जांचें पूरी की हैं। इस तरह यह लैब प्रदेश की सभी आठ लैबों में पहले स्थान पर है।

कोरोना संक्रमण की शुरुआत में डॉ. सुमित वार्ष्णेय जेएन मेडिकल कालेज में माइक्रो बायोलॉजिस्ट के पद पर तैनात थे। इसके बाद सुमित को नौ जुलाई 2020 को दीनदयाल अस्पताल भेजा गया। यहां सुमित वार्ष्णेय के सामने चुनौती थी कि वह यहां सारी मशीनें व कंप्यूटर स्टॉल करें और एडवांस्ड तकनीकी से कोरोना की जांच शुरू करें। सुमित के पास स्टाफ भी प्रशिक्षित नहीं था। शुरुआत में स्टाफ के साथ 14 घंटे तक काम करना पड़ा।

सुमित ने जेएन मेडिकल कालेज के अनुभव का बखूबी प्रयोग किया और स्टाफ को प्रशिक्षित किया। साथ ही उन्होंने रैपिड मैथड शुरू किया, जिसे जीन एक्सपर्ट कहते हैं। इसमें टीबी जांच की मशीन काम में आती है, जिससे डेढ़ घंटे में परिणाम आ जाता है। यह जांच उन मरीजों के लिए फायदेमंद साबित हुई। जिनका ऑक्सीजन स्तर काफी कम आ रहा था। डेढ़ से दो घंटे में रिपोर्ट मिल जाती तो मरीज को वेंटिलेटर दे दिया जाता। जीन एक्सपर्ट को सीबीनेट भी कहते हैं। इस जांच केंद्र के 14 लोगों के स्टाफ के साथ सुमित ने तालमेल बनाकर ऐसा काम किया कि रविवार तक एक लाख 80 हजार जांच पूरी हो गई हैं।

शुरुआत में घर में रहते थे क्वारंटीन, बच्चों से कह दिया कि पापा बाहर गए हैं

सुमित वार्ष्णेय और उनका स्टाफ लगातार 300 दिनों से सेवा दे रहा है। सुमित वार्ष्णेय ने बताया कि घर में दो साल का बेटा नियांश व सात साल की बेटी समृद्धि है। परिवार देहलीगेट पर रहता है। उन्होंने बताया कि जब कोरोना की शुरुआत हुई थी और जांच शुरू की थी तो घर में एक कमरे का क्वारंटीन सेटअप बना रखा था। पत्नी दरवाजे पर खाना दे जाती थी। बेटी पूछती थी कि पापा कहां है तो मां बताती थीं कि पापा बाहर गए हैं। लगातार चार महीनों तक तक तो बच्चों से मुलाकात नहीं की। उन्होंने बताया कि घर जाकर गर्म पानी से नहाता था और क्वारंटीन हो जाता था। माता-पिता दोनों डायबिटीज के मरीज हैं। इसीलिए किसी के संपर्क में नहीं आता था।

संक्रमित हुए, लेकिन अपनी तकलीफ भूल दूसरों की सांसों के लिए जूझते रहे

डॉ. आरबी कमल, प्राचार्य जीएसवीएम मेडिकल कालेज, कानपुर


जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरबी कमल 11 अप्रैल को कोरोना संक्रमित हो गए थे। इस दौरान संक्रमितों की संख्या बहुत बढ़ी हुई थी। संक्रमित होने के बावजूद वह रोगियों की जान बचाने में जुटे रहे। उनकी खुद की सांस फूल रही थी और गहरी थकान ने घेर लिया था। इसके बाद सारी-सारी रात रोगियों के लिए ऑक्सीजन का जुगाड़ करते रहे। लिंडे कंपनी का लिक्विड ऑक्सीजन टैंकर

पहुंचने में लेट हो गया था तो किसी तरह सिलिंडरों की व्यवस्था करके रोगियों का ऑक्सीजन सपोर्ट बनाए रखा।

अप्रैल के पहले हफ्ते में मेडिकल कॉलेज की उप प्राचार्य डॉ. रिचा गिरि समेत कई कंसल्टेंट संक्रमित होने की वजह से क्वॉरंटीन हो गए थे। हैलट के दोनों कोविड अस्पताल फुल थे। सभी डरे हुए थे। डॉक्टर हतोत्साहित न हों, इसके लिए डॉ. कमल अकेले कार के शीशे बंद करके हैलट के कोविड अस्पतालों में जाकर स्थिति देखते। साथ ही क्वॉरंटीन रहते हुए शासन और मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के बीच सामंजस्य को बरकरार रखा था। उन्होंने बताया कि स्थिति ऐसी बिगड़ी हुई थी कि अपनी हालत याद ही न रहती थी। पता ही नहीं चला कि कब पॉजिटिव हुए और कब निगेटिव हो गए। चूक की कोई गुंजाइश नहीं थी, सैकड़ों रोगियों की जिंदगी का सवाल  था।

डेढ़ माह से घर में बच्चों से नहीं मिले, संक्रमितों की जांच का उठा रहे जिम्मा

डॉ. इकबाल मलिक, कंडी ब्लॉक के बीएमओ, राजोरी, जम्मू

कोरोना संक्रमण के हॉटस्पॉट बने राजोरी जिले में कंडी ब्लॉक के बीएमओ डेढ़ माह से घर में बच्चों से नहीं मिल पाए हैं। बीएमओ कंडी डॉ. इकबाल मलिक सैंपल जांच, संक्त्रस्मित व्यक्ति के संपर्क खोजने से लेकर कोरोना वैक्सीन के लिए लोगों को तैयार करने पर जोर देते हैं। डॉ. मलिक का कहना है कि घर-परिवार अपनी जगह है, लेकिन सरकार से वेतन लेते हैं और डॉक्टरी पेशा है। इसे लेकर उनकी प्राथमिकता रहती है।

डॉ. मलिक ने बताया कि कंडी में बनाए गए क्वारंटीन केंद्र की निगरानी का जिम्मा संवेदनशील है, जिसके लिए वह अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करते हैं। कोरोना काल में लोगों से लेकर स्टाफ में प्रेरक माहौल बनाए रखना जरूरी है। वह इसी का प्रयास करते हैं, ताकि मिलकर इस महामारी से जंग जीती जा सके। डॉ. मलिक का परिवार दरहाल में रहता है, जहां पिछले डेढ़ माह से जाना नहीं हो सका। कंडी ब्लॉक में कोरोना रोकथाम का काम युद्धस्तर पर चल रहा है, जिसमें डॉ. मलिक बेहद सक्रिय नेतृत्व के साथ पूरे अमले की प्रेरणा बने हुए हैं। 

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