20 जुलाई को देवशयनी एकादशी है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करना आरंभ कर देते हैं और वर्षा के चार मास अर्थात चातुर्मास के चार माह विश्राम करते हैं। देवोत्थान एकादशी अर्थात कार्तिक शुक्ल की एकादशी को वे जागृत होकर स्वर्ग लोक में पधारते हैं। पुराणों में वर्णित आख्यानों के अनुसार चातुर्मास में कुछ कार्य करने योग्य होते हैं और कुछ नहीं।
काम जो कर सकते हैं चातुर्मास में: प्राचीन काल में भारत में जंगल, वन और नदियां बहुतायत में थी। भारतवर्ष में ये चार माह वर्षा काल के माने गए हैं। लोगों का दूर देशों में आना- जाना नहीं होता था। लोग इन चार महीनों में अपने घरों में विश्राम करते थे और भगवान का ध्यान-पूजन किया करते थे। नदियों पर पुल नहीं थे और नदियां पार करने की भी उचित व्यवस्था नहीं थी। इन दिनों में बाढ़ आदि से नदियों का जल स्तर बढ़ जाता था। इसलिए लोग अपने को घरों में ही सुरक्षित मानते थे। चातुर्मास के इन चार महीनों में भगवान नारायण का जाप,अनुष्ठान,यज्ञ और हवन करना चाहिए।
यह काम बिल्कुल भी ना करें: हमारे प्राचीन विद्वानों ने चातुर्मास की अवधि को विवाह संस्कार, मुंडन और गृह प्रवेश को अशुभ माना है। इसलिए इन दिनों में इन कार्यों को करना अच्छा नहीं माना जाता है। श्रावण,भाद्रपद,आश्विन और कार्तिक इन चार महीनों में कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनका हमें सेवन नहीं करना चाहिए। श्रावण महीने में पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए क्योंकि वर्षा अधिक होने से पत्तेदार सब्जियों में हानिकारक जीवाणु विकसित हो जाते हैं। जो जाने अनजाने में हमारे भोजन तक पहुंच सकते हैं। भाद्रपद के महीने में दही का खाना वर्जित होता है। इन दिनों सिंह के सूर्य भी होते हैं। प्रकृति में उमस बढ़ जाती है जिससे दही में अधिक मात्रा में हानिकारक जीवाणु उत्पन्न होते हैं। उसमें खट्टापन बढ़ जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसलिए हमारे ऋषियों ने भाद्रपद महीने में दही को खाना मना किया है। इससे पित्त सम्बन्धी विकार बढ़ जाते हैं।
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आश्विन महीने में दूध का सेवन न करें। इस अवधि में लगभग वर्षा काल पूरा होने को होता है किंतु मौसम में परिवर्तन हो जाता है। दूध देने वाले पशुओं का स्थान वर्षा के कारण अशुद्ध जाता है। इस कारण ग्वाले आदि भी उस समय दूध धोने में विशेष सावधानी नहीं रख पाते थे। इस कारण आश्विन मास में दूध का सेवन वर्जित है। आश्विन के महीने में पितृपक्ष भी होता है। कहा जाता है कि पितृपक्ष में भी दूध का सेवन करने से हमारे पूर्वज असंतुष्ट हो जाते हैं। कार्तिक के महीने में प्याज, लहसुन, उड़द की दाल, छोले, बैंगन, मसालेदार सब्जियां ,मांसाहारी भोजन करना वर्जित माना गया है। इन भोजन करने से शरीर में कफ संबंधी व्याधियों जन्म लेती हैं। हमारे ऋषियों ने इनका निषेध किया है। चातुर्मास में काले, नीले वस्त्र धारण न करें। परनिंदा से बचें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। ऐसा करने से हम इन मासों को अपने स्वास्थ्य के अनुकूल बना सकते हैं।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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