माँ महागौरी का स्वरूप और आध्यात्मिक महत्त्व
चैतरा नवरात्रि के आठवें दिन हम Maa Mahagauri की अति पवित्र पूजा करते हैं। सफेद रूप में धरी यह देवी शुद्धता, शांति और निरंतरता का प्रतीक है। "महागौरी" नाम का अर्थ है "बहुत ही उज्ज्वल सफेद" – जो अज्ञान और पाप के अंधेरे को दूर करती है। चार भुजाओं में वह अभय मुद्रा, आशीर्वाद, त्रिशूल और डमरू धारण करती है, और अपने बैल पर सवार होकर भक्तों को मोक्ष की राह दिखाती है।
भक्तों का मानना है कि इस दिव्य रूप की पूजा से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं, सुख-शांति और समृद्धि की धारा बहती है। विशेष रूप से यह दिन नकारात्मकों को दूर करके मन को शुद्ध करने का अवसर देता है।

पूजा विधि (शोडशोपचार) और विशेष रिवाज
पुराने शास्त्रों के अनुसार माँ महागौरी की पूजा में कुल सोलह चरण होते हैं। सबसे पहले द्याना (ध्यान) और आवाहन (आह्वान) किया जाता है, जहाँ मंत्रों और विशेष मुद्राओं से देवी को आमंत्रित किया जाता है। फिर आसन, पैरों की प्राक्षालन, अर्घ्य समर्पण और अछमन (जल प्रसाद) से शुरू होता है। इसके बाद स्नान, वस्त्र, आभूषण, चंदन, रोली, काजल आदि के साथ रवीपारायण (रवीपत्र) चढ़ाया जाता है।
मंगल पदार्थों में अक्षता (चावल), सुगंधित पदार्थ, हरिद्रा (हल्दी) और सौभाग्य सूत्र शामिल होते हैं। फूलों की पुस्पांजलि, बिल्वपत्र, धूप, नैवेद्य, ऋतुपाल, नारियल और तम्बूला (सौभा) को क्रमशः अर्पित किया जाता है। कण्यापूजन (युवा लड़कियों की पूजा) के बाद दान (दक्षिणा) दिया जाता है, जिससे पूजा का आध्यात्मिक पहलू पूर्ण होता है। अंत में निरंजन (आरती), परिक्रमा और क्षमा प्रार्थना के साथ समाप्ति होती है।
विशेष अभ्यास में दुर्गा सप्तशती का पाठ, देवी कवच और क्षमा प्रार्थना शामिल हैं। माँ के चरणों में जल अर्पित करते हुए सभी कथित कर्तव्यों और औचित्य का धन्यवाद किया जाता है।
उपवास के नियम भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भक्त केवल सात्विक भोजन ग्रहण करने चाहिए – फल, दूध, दही, खजूर, घी, काजू, चना, कश्मीरी या बादाम मिलाकर बने कheer और मखाना जैसी ऊर्जा देने वाली चीजें। नमक के स्थान पर सागर नमक या चूना ले लेनी चाहिए। इस प्रकार का उपवास न केवल शारीरिक शुद्धि देता है, बल्कि मन को भी स्थिर रखता है।
पूरी प्रक्रिया में जो ध्यान और समर्पण दिखाई देता है, वह भक्त को आत्मिक रूप से शुद्ध करता है। माँ महागौरी की कृपा से सभी पाप नष्ट होते हैं, बाधाएँ हटती हैं, और परिवार‑समुदाय में शांति एवं समृद्धि का संचार होता है। यह आध्यात्मिक लाभ न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।