देश में वैक्सीनेशन अभियान को तेज करने के लिए सरकार और हेल्थ वर्कर जी जान से जुटे हुए हैं लेकिन हमारी इंफ्रास्ट्रक्चर की रूपरेखा इस तरह बनी है कि आज भी सुदूर गांव में बुनियादी सुविधाओं की किल्लत जारी है. इसी लचर व्यवस्था के कारण महाराष्ट्र के एक सुदूर जनजातीय गांव में 4 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद हेल्थ वर्कर जब पहुंचे तो उन्हें सिर्फ 11 लोगों को ही वैक्सीन देकर वापस आने पर मजबूर होना पड़ा. वहां न बिजली थी न मोबाइल नेटवर्क. पेड़ पर बहुत ऊपर पहुंचने पर थोड़ा सा सिग्नल आ रहा था लेकिन वह भी नाकाफी था. नतीजा उन्हें वापस आना पड़ा.
नाव और पहाड़ का कठिन रास्ता
दरअसल, हेल्थ वर्कर नर्मदा नदी के किनारे नंदुरबार जिले में एक जनजातीय गांव में वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए चार घंटे की कठिन यात्रा के बाद पहुंचे थे. उन्हें यहां पहुंचने के लिए जंगल के रास्ते नाव से और फिर पहाड़ पर चढ़कर पहुंचना पड़ा. लेकिन यहां का नजारा बिल्कुल अलग था. कोई भी सरकारी इमारत इन हेल्थ वर्करों के रहने के लिए नहीं थी. सभी खराब पड़े थे. नेट कनेक्टिविटी बिल्कुल धीमी थी. गांव के लोग भी वैक्सीन लेने के प्रति उत्साहित नहीं थे. इसका नतीजा यह हुआ कि पूरे दिन में सिर्फ 11 लोगों को वैक्सीन देकर वापस आना पड़ा.
पेड़ पर चढ़कर आ रही थी कनेक्टिविटी
हेल्थ वर्करों की 9 लोगों की टीम अक्कलकुआ से आदिवासी गांव चिमालखेड़ी पहुंची थी. अक्कलकुआ नासिक शहर से 450 किलोमीटर की दूरी पर है. टीओआई में छपी खबर के मुताबिक अक्कलकुआ के तहसीलदार रामजी राठौर के नेतृत्व में यह टीम इस गांव पहुंची थी. उन्होंने बताया कि मोबाइल कनेक्टिविटी यहां की सबसे बड़ी समस्या थी. पेड़ पर ऊपर चढ़कर कुछ कनेक्टिविटी आ रही थी लेकिन ऐसा करने में सभी लोग सक्षम नहीं थे. इसके बाद पास के एक पहाड़ी पर हमलोग चढ़े और वहां कुछ कनेक्टिविटी आई. गांव में कहीं बैठने तक की व्यवस्था नहीं थी. हमलोग अपने अथक प्रयास से पेड़ के नीचे 11 लोगों को वैक्सीन दिया. इनमें सात लोग इसी गांव के थे जबकि चार लोग पास के गांव के थे.
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