कोरोना महामारी ने लोगों को शारीरिक और मानसिक रुप से बीमार कर दिया है. जो लोग कोरोना की दूसरी लहर में प्रभावित हुए हैं उनके दिमाग पर इस महामारी का असर ज्यादा हुआ है. कोरोना संक्रमित होने पर लोगों के मन में मरने का डर बैठ गया है. वहीं बच्चों के दिमाग पर भी इस बीमारी का बहुत असर हुआ है. कोरोना की वजह से किसी ने अपने पिता को खोया है तो किसी ने अपनी मां को. कई लोगों के घर में मां-बाप दोनों की मौत हो गई है अब घर में सिर्फ बच्चे ही बचे हैं. कुछ बच्चों ने अपने परिजनों को अस्पताल में एडमिट होते देखा, ऑक्सीजन और दवाओं के लिए भटकते हुए देखा है. ऐसे में बच्चों के मन पर इन सब बातों का स्ट्रेस है जो इतनी जल्दी और आसानी से नहीं जाता है.
ऐसे माहौल का बच्चों के मन पर गहरा असर पड़ा है. बच्चों की मानसिक स्थिति का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आजकल इंटरनेट पर पैरेंट्स की मौत हो जाएगी तो हम कैसे जिंदा रहेंगे? जैसे सवालों के जवाब खोजे जा रहे हैं.
खुद को जिम्मेदार मान रहे हैं- कोरोना में अपनों को गंवाने वाले बहुत सारे बच्चे खुद गिल्ट में जी रहे हैं. अपने मा- बाप या किसी परिजन की मौत का जिम्मेदार खुद को मान रहे हैं. एक परिवार में एक बेटा पिता के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं कर पाया तो खुद को जिम्मेदार मान रहा है. बच्चों पर इस घटना का मनोवैज्ञानिक असर इतना डरावना है कि कई बच्चों को अभी इस घटना से उबरने में काफी वक्त लग सकता है.
भ्रम में हैं बच्चे- कई बच्चे ऐसे हैं जो इस घटना के बाद बुरी तरह से सहम गए हैं. एक बच्चा जिसने अपने माता-पिता दोनों को इस कोरोना में खो दिया, अब अपने भाई-बहन किसी से बात नहीं करता है. वो दिन-रात भ्रम में रहता है. इस हादसे ने उसे इतना डरा दिया है कि वह किसी पर विश्वास नहीं कर पा रहा है. हालांकि लगातार काउंसलिंग के बाद ऐसे बच्चों में सुधार आ रहा है.
सदमा और आर्थिक तंगी- जिन बच्चों के सिर से पिता का साया छिन गया वो मौत से सदमे में हैं. घर में मां और भाई-बहन हैं. पिता की मौत के बाद बहुत से परिवारों में आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी है. ऐसे में परिवार की आर्थिक तंगी से भी बच्चों को जूझना पड़ रहा है.
बच्चों के लिए नाजुक वक्त- मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना महामारी ने बच्चों के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. बच्चों ने सब कुछ देखा है और झेला है. पूरे के पूरे परिवार इस बीमारी में तबाह हो गए. किसी ने माता-पिता को खोया तो किसी मे भाई-बहन को. परिवार से दादा-दादी का साथ भी छूट गया. अस्पतालों की हालत, दवाओं की कमी, ऑक्सिजन की मारामारी इन सब बातों का स्ट्रेस बच्चों के दिमाग पर हुआ है. ऐसे में बहुत सारे बच्चे स्ट्रेस और एंजायटी से पीड़ित हैं. बच्चों के मन में खुद की मौत डर भी पैदा हो गया है. ऐसे में बच्चों के लिए यह बहुत ही नाजुक समय है. इस स्थिति से उन्हें निकलने के लिए परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों, समाज और सरकार सभी को सहयोग करना होगा.
संयुक्त परिवार मदद करें- हम सभी पिछले डेढ़ साल से इस महामारी को देख रहे हैं. बच्चों के एग्जाम नहीं हो पा रहे हैं. स्कूल कॉलेज बंद हैं. घर में लोग बीमार हैं. किसी के पड़ोसी, किसी के रिश्तेदार, तो किसी ने अपने परिवार को हमेशा के लिए खो दिया है. ऐसे में संयुक्त परिवार को उन बच्चों के बारे में सोचना चाहिए. सिंगल परिवार में रहने वाले बच्चों को इस परिस्थिति में ज्यादा दिक्कत हो रही है, क्योंकि किसी की मौत के बाद उनके साथ कोई अपना खड़ा नहीं है, जिस पर वह विश्वास कर पाएं. ऐसे में बच्चों का रूटीन बना रहना चाहिए, परिवार और रिश्तेदारों को साथ देना चाहिए.
सबको उठानी होगी जिम्मेदारी- बच्चों को इस मानसिक ट्रॉमा से निकालने में सभी को मदद करनी होगी. डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे बच्चों को इलाज की भी जरूरत होती है. शुरुआत में कुछ दवाएं दी जा सकती हैं लेकिन बाद में काउसंलिंग से ऐसे बच्चे ठीक हो सकते हैं. यहां परिवार, रिश्तेदार, स्कूल, पड़ोसी और दोस्तों को अहम रोल निभाना है. निगेटिव की बजाय पॉजिटिव चीजें उनके अंदर पैदा करें. हौसला और हिम्मत दें. वहीं सोशल सपोर्ट सबसे जरूरी है. जो बच्चे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं उनके बारे में सोचना है. बच्चों को समझाएं कि जो हुआ वह महामारी थी, न कि आपकी गलती. धीरे-धीरे समय के साथ स्थिति में सुधार आने लगेगा.
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