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Jaipur: मखमली कपड़े में लपेटे हुए मासूम को लेकर डॉक्टर के कदम जैसे-जैसे उनकी तरफ बढ़ रहे थे, उसके दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. हो भी क्यों न? नई जिंदगी मानों बाहें खोलकर कह रहीं थीं कि मुझे गले से लगा लो… दिल में ऐसी खुशी थी कि बस चले तो एफिल टॉवर पर चढ़कर चिल्ला देते वो कि … देखो जमाने वालों, तुम्हारी लाख रुकावटों के बाद आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी तुमने कल्पना नहीं की थी…
बात कर रहे हैं बॉलीवुड के जाने-माने फिल्म एक्टर तुषार कपूर की जिंदगी के उस खास पल की, जब पहली बार उन्होंने अपने बेटे लक्ष्य को गोद लिया होगा. उस पल को शायद वह वहीं थाम देना चाहते थे. आंखें तो उस झरने की तरह बह रहीं थीं, जैसे किसी रुके झरने के सामने से बड़ा सा पत्थर हट गया हो…
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बेटे लक्ष्य की नाजुक उंगलियों ने जब तुषार कपूर की उंगलियों को पहली बार छुआ, तो शायद तुषार ने भी वही एहसास महसूस किया होगा, जो एक मां अपने नवजात को गोद में लेने के बाद करती है. बिना मां वाले बच्चे के पिता जो बन गए थे तुषार कपूर. जैसे-जैसे समय गुजरना शुरू हुआ, तुषार की जिम्मेदारियां बढ़ीं. लक्ष्य के रोने की आवाज, उसकी फीडिंग टाइमिंग, डायपर चेंज और उसकी सेहत का ख्याल ये सब मानों तुषार की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए. बीवी के साथ होने पर तो उसका साथ मिल जाता है लेकिन न होने पर एक मां की जिम्मेदारियां भी उठानी पड़ती हैं. ऐसा ही कुछ कर रहे थे तुषार.
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बाप के साथ-साथ निभाया मां का भी रोल
समाज और सोशल मीडिया की ट्रोलिंग की फिक्र न करते हुए तुषार कपूर बिना शादी के सरोगेसी की मदद से बाप बने. साफ़ तौर पर कहा जाए तो ‘सिंगल पैरेंट’. एक ऐसी जिम्मेदारी जिसमें बच्चे की छोटी-बड़ी ही नहीं, बाप के साथ-साथ मां का भी रोल निभाना पड़ता है. बच्चे की हर छोटी-बड़ी जिम्मेदारी एक ही शख्स को उठानी है. लाइट्स…कैमरा…एक्शन जैसी दुनिया के बीच रहने वाले तुषार आज भी बखूबी अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं. ऐसे में समझ नहीं आता कि हमारा समाज सिंगल पैरेंट या अकेले पिता को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर पा रहा है.
सिंगल पैरेंट बनकर समाज को दिया जवाब
आपकी निगाहें भी शर्म से झुक जाएंगी यह जानकर कि सिंगल पैरेंट बनने का फैसला लेने वाले तुषार कपूर को सोशल मीडिया पर उनके आलोचकों ही नहीं, फैन्स ने भी क्या-क्या कह डाला? किसी ने उन्हें नपुंसक तो किसी ने गे तक कह दिया. पर एक बात और, अगर कोई गे है भी, और वो बच्चा पैदा नहीं कर सकते, ऐसे में उनका इस तरह से बच्चे को पाने में बुराई क्या है? क्या उनकी फीलिंग्स नहीं हैं? किसी के बच्चे को देखकर उसे सीने से लगाने की चाह को सीने में मसोसकर रह जाना, यह आज के लोग नहीं हैं. हंसी आ जाएगी जब आप यह सुनेंगे कि लोगों ने तो यहां तक कह दिया था कि वह लड़की का खर्चा नहीं उठा सकते. पर सवाल तो यह है कि क्या एक बच्चे की चाहत के लिए शादी करना जरूरी है? क्या समाज में सिंगल पैरेंट की कोई जगह नहीं है?
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सिंगल पिता जो महसूस करना चाहते गोद में बच्चों की अठखेलियां
लोग क्यों नही समझते कि आज दुनिया बदल रही है. आज दुनिया में तुषार और करण जौहर जैसे कई लोग हैं, जो शादी नहीं करना चाहते हैं, पर हां एक औलाद का सुख जरूर पाना चाहते हैं. वो भी चाहते हैं कि उनके घर के आंगन में किलकारियां गूंजें. वो भी उसके लिए किडजी के शोरूम से शॉपिंग करना चाहते हैं, उस उस बच्चे की अठखेलियों में अपना बचपन जीना चाहते हैं.
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में दिन भर की थकान के साथ जब वह वापस घर आते हैं, तो टीवी या मोबाइल में नहीं लगे रहना चाहते बल्कि किसी ऐसे मासूम के हाथ थामकर चलाना सिखाना चाहते हैं, जिसे देखकर वह दिन भर का स्ट्रेस भूल जाना चाहते हैं.
पर समाज है कि ऐसे लोगों को ख़ुशी-ख़ुशी जीने नहीं देता. सोचने वाली बात तो यह है कि पितृ सत्तात्मक देश में जब लड़के या पुरुष सिंगल पैरेंट बनने का फैसला लेते हैं, तो शायद इससे बेहतर बात क्या होगी?
लड़के शर्ट को बना लेते हैं बच्चों के लिए आंचल
जिस देश में महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझा जाता है, वहां के लड़के सिंगल पैरेंट जैसे फैसले से लोगों को सन्देश देने का काम कर रहे हैं कि हम सिर्फ पैसे कमाने की मशीन नहीं हैं, हमारे पास भी वह दिल है, जो बच्चे को बिन मां के भी संभाल सकता है. वह अकेले ही बाप ही नहीं, अपनी शर्ट को उसकी मां का आंचल बना सकता है.
जिस तरह से पुरुषों में सिंगल पैरेंट बनने की क्षमता बढ़ रही है, वैसे ही समाज को भी इसे अपनाने से गुरेज नहीं होना चाहिए. हर शख्स को अपनी खुशियों और अपने तरीके से जीने की आजादी है. आज फादर्स डे पर तुषार कपूर और करण जौहर जैसे लोग उस समाज के लिए मिसाल हैं, जहां लोग कहते हैं कि पिता कभी मां का दर्जा नहीं निभा सकता. उसकी कमी नहीं पूरी कर सकता.
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