डिजिटल डेस्क,कोपनहेगन। डेनमार्क की सरकार ने उत्तरी सागर में एक आर्टिफिशियल आइलैंड बनाने को हरी झंडी दी है। ग्रीन एनर्जी पर स्विच करने के अपने प्रयास के तहत इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। इसे डेनमार्क के इतिहास में शुरू की जाने वाली सबसे बड़ी निर्माण परियोजना कहा जा रहा है। इस परियोजना में DKK 210 बिलियन की अनुमानित लागत आएगी। 2033 तक इसका ऑपरेशन शुरू होने का अनुमान है।
ये एनर्जी आइलैंड एक प्लेटफॉर्म पर आधारित है जो सराउंडिंग ऑफशोर विंड फार्म से बिजली उत्पादन के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा। इसके जरिए डेनमार्क और पड़ोसी देशों के बीच पावर को जोड़ने और डिस्ट्रीब्यूट करने का प्लान है। डेनमार्क ने पहले ही एनर्जी आइलैंड में कनेक्शन के जॉइंट एनालिसिस को शुरू करने के लिए नीदरलैंड, जर्मनी और बेल्जियम के साथ समझौता किया है।
जून 2020 में, डेनमार्क की संसद ने दो एनर्जी आइलैंड के निर्माण का फैसला किया था जो डेनमार्क और पड़ोसी देशों में पावर एक्सपोर्ट करेगा। इनमें से एक आइलैंड उत्तरी सागर में और दूसरा आइलैंड बाल्टिक सागर में स्थित होगा। बीते दिनों यूरोपीय यूनियन ने एक दशक के भीतर नवीकरणीय ऊर्जा पर अपनी निर्भरता को बढ़ाने की योजना की घोषणा की थी। ईयू का प्लान है कि 2050 तक ऑफशोर विंड एनर्जी कैपिसिटी को 25 गुना से ज्यादा बढ़ा लिया जाए। इस घोषणा के बाद ही डेनमार्क ने ये कदम उठाया है।
एनर्जी आइलैंड डेनमार्क के पश्चिमी तट से 80 किलोमीटर दूर स्थित होगा। इस आकार 120,000 वर्ग मीटर होगा। इसकी तुलना अगर फुटबॉल मैदान से की जाए तो ये करीब 18 फुटबॉल मैदानों के बराबर होगा। अनुमान बताते हैं कि यह यूरोपीय संघ (ईयू) में 3 मिलियन से अधिक घरों की बिजली आवश्यकताओं को कवर करने के लिए पर्याप्त ग्रीन एनर्जी को स्टोर और प्रड्यूज करने में सक्षम होगा।
डैनिश एनर्जी एजेंसी के अनुसार, ऊर्जा और उद्योग के लिए जलवायु समझौते के हिस्से के रूप में, डेनमार्क दुनिया का पहला देश बनना चाहता है जो लगभग 5 GW ऑफशोर विंड की कुल क्षमता वाले ऐसे एनर्जी आइलैंड पर काम करना शुरू करें।
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