Mahabharat: महाभारत में पांडवों को 12 वर्ष वनवास, एक वर्ष अज्ञातवास मिला. इसके बाद अर्जुन इंद्र से दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए हिमालय में तपस्या करने गए. इधर, उनके भाई और पत्नी द्रौपदी का भी जंगल में मन नहीं लगा तो वे मन की शांति के लिए नारायण आश्रम में जाकर रहने लगे.
इस दौरान एक दिन उत्तर–पूर्व दिशा से एक कमल पुष्प उड़ कर द्रौपदी के पास आ गया. बेहद महक वाले इस फूल पर द्रौपदी मोहित हो गईं और उन्होंने भीम को ऐसे ही और फूल लाने के लिए भेज दिया. सुगंध की ओर बढ़ते हुए भीम जंगल में पहुंच गए, जहां एक वानर लेटा दिखा. इस पर भीम ने कहा कि हे वानर! रास्ते से हटो, रास्ता साफ करो. वानर ने जवाब दिया मैं बहुत बूढ़ा और कमजोर हूं, तुम्हें जाना ही है तो मुझे लांघ जाओ. भीम बोले, तुम जानते नहीं कि किससे बात कर रहे हो. मैं कुंती पुत्र भीम हूं.
भगवान पवन मेरे पिता हैं और प्रसिद्ध हनुमान मेरे भाई. तुम मेरा अपमान करोगे तो प्रकोप झेलना ही होगा. वानर ने तंज कसा कि इतनी ही जल्दी है तो पूंछ हटाकर जाओ. गुस्से में आए भीम ने पूंछ हटाने की कोशिश की, लेकिन पस्त हो गए. इस पर भीम ने कहा कि आप साधारण वानर नहीं हैं, बताएं आप कौन हैं. तब वानर ने कहा भीम! मैं वही हनुमान हूं, जिसके बारे में अभी तुम बता रहे थे. मैं ही तुम्हारा बड़ा भाई हूं. आगे रास्ता देवताओं का है, जो मनुष्यों के लिए सुरक्षित नहीं है. मैं जानता हूं कि तुम यहां कमल पुष्प लेने आए हो. मैं तुम्हें वह तालाब दिखाऊंगा, जहां से तुम चाहे जितने पुष्प ले जा सकते हो.
भीम बहुत खुश हुए और अनुरोध किया कि विशाल रूप दिखाएं. हनुमान जी ने विशाल रूप धारण कर भीम को दर्शन दिया. इसके बाद साधारण रूप में लौटकर भीम को गले लगा लिया. इसके बाद हनुमान जी ने भीम को वरदान दिया कि जब युद्ध मैदान में तुम शेर की तरह दुश्मन को ललकारोगे तो मेरी आवाज तुम्हारी आवाज से जुड़ जाएगी, जिससे शत्रुओं के प्राण निकल जाएंगे. हनुमान जी के गले लगाने से भीम की ताकत और बढ़ गई. हनुमान जी ने भीम को अहंकार के भाव से भी मुक्त कर दिया.
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