नई दिल्ली:
नदी के तल से पत्थरों को हटाने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए वन और पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में वन क्षेत्र में नदी के तल से पत्थरों हटाने पर पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट प्रस्तुत करें. सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई समुद्र और केरल का हवाला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबे समय में चट्टानों हटाने से पर्यावरण प्रभावित हो सकता है.
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चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा यह पर्यावरण के लिए अच्छा हो सकता है या नहीं भी हो सकता है. हम चाहते हैं कि आप केवल रिवर बेड को परेशान किए बिना चट्टान उठाने की जांच करें. हमें बताएं कि क्या आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि केवल पत्थरों को हटाया जाएगा और रेत या किसी अन्य सामग्री को नहीं. हमारी चिंता यह सुनिश्चित करना है कि यह लंबे समय में पर्यावरण को प्रभावित न करे. मुंबई में समुद्र के किनारे पानी के प्रवाह को रोकने के लिए पत्थरों को रखा गया है. पानी के प्रवाह का क्या होगा.
उन्होंने कहा कि केरल में जब पत्थरों को हटाया गया तो मिट्टी जमा हो गई और नदियों में आईलैंड बन गए. एमिकस क्यूरी ने अदालत को बताया कि यह क्षेत्र लगभग 1.14 हेक्टेयर भूमि है और कुल्लू वन भूमि प्रभाग में पत्थरों को हटाने के लिए अनुमति मांगी गई है. उन्होंने अदालत से कहा कि पहाड़ी क्षेत्र में चट्टानें ऊपर से आती हैं और अगर यदि वे केवल अंडरटेकिंग देते हैं कि सिर्फ चट्टानों को हटाएंगे, तो ठीक है. CJI ने आदेश में कहा यह सर्वविदित है कि पत्थरों की उपस्थिति का नदियों में बल जल प्रवाह पर सीधा प्रभाव पड़ता है.
हमें लगता है कि MoEF को प्रस्ताव पर एक ईआईए के लिए विशेष रूप से एक राय बनानी चाहिए, कि अगर अनुमति दी जाती है, तो इससे न केवल तुरंत बल्कि लंबे समय में पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. ईआईए की लागत आवेदक को वहन करनी चाहिए. मामले की सुनवाई 4 सप्ताह होगी.
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