Ramayan : क्षत्रिय कुल में जन्मे विश्वामित्र का असली नाम राजा कौशिक था. वह प्रजा प्रिय और अतिबलशाली थे. कौशिक के कष्टों को जानने के लिए अक्सर प्रजा के बीच जाते थे. एक बार वे विशाल सेना लेकर जंगल में गए, जहां रास्ते में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम पड़ा. यहां उन्होंने रुककर महर्षि से भेंट की. इस दौरान गुरु वशिष्ठ ने कौशिक का शानदार सत्कार किया. उनकी विशाल सेना को भर पेट स्वादिष्ट भोजन कराया. एक ब्राह्मण विशाल सेना और राजा को कैसे इतने स्वादिष्ट व्यंजन खिला सकता है, इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए वे गुरु वशिष्ठ के पास गए. गुरु वशिष्ठ ने बताया कि हे राजन! मेरे पास मेरी नंदिनी गाय हैं. यह स्वर्ग की कामधेनु गाय की संतान हैं, जिसे मुझे खुद इंद्रदेव ने भेंट की. नंदनी सभी की भूख मिटा सकती है.
इस पर राजा कौशिक ने कहा कि हे गुरुवर! मुझे नंदनी चाहिये, बदले में आप जितना चाहें धन ले लें. यह सुनकर वशिष्ठ ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि हे राजन! नंदनी मुझे प्राणों से प्रिय है, वो सदा साथ रही है. मैं उसका मोल नहीं लगा सकता. इतना सुनकर राजा कौशिक इसे अपना अपमान समझकर सेना को आदेश देते हैं कि वो गुरु से नंदनी गाय छीन ले. मगर जैसे ही सैनिक नंदनी को ले जाने का प्रयास करते हैं वह गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से अपनी योग माया दिखाती है और राजा की विशाल सेना का अकेले विध्वंस कर डालती है. वह राजा को भी बंदी बनाकर गुरु वशिष्ठ के सामने खड़ा कर देती है. वशिष्ठ क्रोधित होकर राजा के एक पुत्र को छोड़ सभी को शाप से भस्म कर देते हैं. यह देखकर दुखी कौशिक राजपाट पुत्र को देकर तपस्या करने जाते हैं. प्रसन्न हो भगवान शिव वरदान मांगने को कहते हैं तो कौशिक उनसे सभी दिव्यास्त्र का ज्ञान मांग लेते हैं.
पुत्रों का बदला लेने फिर किया आक्रमण
धनुर्विद्या का ज्ञान लेकर राजा कौशिक पुत्रों की मृत्यु का बदला लेने के लिए वशिष्ठ पर दोबारा आक्रमण करते हैं. दोनों तरफ से घमासान युद्ध शुरू हो जाता हैं. मगर कौशिक के छोड़े हर शस्त्र को वशिष्ठ विफल कर देते हैं. अंतः क्रोधित होकर वशिष्ठ कौशिक पर ब्रह्मास्त्र चला देते हैं, जिससे चारों तरफ तीव्र ज्वाला उठने लगती है. तब सभी देवता वशिष्ठजी से अनुरोध करते हैं कि वे ब्रह्मास्त्र वापस लें, पृथ्वी की रक्षा करें. सभी के अनुरोध पर शांत हो वशिष्ठ ब्रह्मास्त्र वापस ले लेते हैं. दूसरी बार भी वशिष्ठ से हार के चलते कौशिक को गहरा आघात लगता है और वह मान लेते हैं कि एक क्षत्रिय की बाहरी ताकत ब्राह्मण की योग शक्ति के आगे कुछ नहीं है. वह तपस्या से फिर ब्रह्मत्व हासिल कर वशिष्ठ से श्रेष्ठ बनने का निर्णय करते हैं. दक्षिण दिशा में अन्न त्याग कर जीवन बिताते हुए कठोर तप से उन्हें राजश्री पद मिलता है फिर भी वह संतुष्ट नहीं होते.
सांस रोक कर क्रोध पर पाई विजय
विश्वामित्र ब्रह्मर्षि बनने की इच्छा पूरी करने के लिए फिर तपस्या में लग गए. इस बार कठिन से कठिन ताप किये, सांस तक रोक कर तपस्या की. शरीर का तेज सूर्य से भी अधिक जलने लगा तो उन्हें अपने क्रोध पर भी विजय मिल गई. इस पर ब्रह्माजी ने ब्रह्मर्षि पद दिया. इसी समय विश्वामित्र ने उनसे ॐ का ज्ञान भी प्राप्त किया. इस कठिन त़प के बाद गुरु वशिष्ठ ने भी उन्हें गले लगाकर ब्राह्मण रूप में स्वीकार किया और इस तरह राजा कौशिक महर्षि विश्वामित्र के रूप में प्रसिद्ध हुए.
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