वरुथिनी एकादशी 07 मई 2021 दिन शुक्रवार को है। सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। हर माह में दो एकादशी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष। एकादशी व्रत र माह की त्रयोदशी को रखा जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा की जाती है।
धार्मिक मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत रखने से बुरा भाग्य में बदलाव होता है। इसके साथ ही भक्त के जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य आता है। इस पावन व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वरुथिनी एकादशी कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव ने कोध्रित हो ब्रह्मा जी का पांचवां सर काट दिया था, तो उन्हें शाप लग गया था। इस शाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने वरुथिनी एकादशी का व्रत किया था। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से भगवान शिव शाप और पाप से मुक्त हो गए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एक दिन व्रत रखने का फल कई वर्षों की तपस्या के समान है।
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वरुथिनी एकादशी पूजा विधि-
-एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करके एकादशी व्रत का संकल्प लें।
– उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर 7 धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
– वेदी के ऊपर एक कलश की स्थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
– अब वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।
– इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें।
– फिर धूप-दीप से विष्णु की आरती उतारें।
– शाम के समय भगवान विष्णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
– रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
– अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
– इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।
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वरुथिनी एकादशी व्रत पारण का समय-
वरुथिनी एकादशी पारणा मुहूर्त 8 मई दिन शनिवार को सुबह 05:35:17 से सुबह 08:16:17 तक है। व्रत पारण की कुल अवधि : 2 घंटे 41 मिनट की है।
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