3:00 बजे भारतीय मानक समय पर 21 नवंबर 2025 को, भारत सरकार ने चार नए श्रम कोड लागू किए — ये कोड लगभग 80 साल के अलग-अलग श्रम कानूनों को एक साथ जोड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी, जो 2014 में प्रधानमंत्री बने और 2019 में दूसरा कार्यकाल शुरू कर चुके हैं, ने सोशल मीडिया पर घोषणा की: 'आज हमारी सरकार ने...'। ये बदलाव देश भर के लगभग 400 मिलियन श्रमिकों के जीवन को बदल देंगे — चाहे वो फैक्ट्री में काम कर रहे हों, बीड़ी बना रहे हों, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर डिलीवरी कर रहे हों।
क्या बदला? चार कोड, एक नया नियम
लागू हुए चार कोड हैं: वेतन कोड, 2019, औद्योगिक संबंध कोड, 2020, सामाजिक सुरक्षा कोड, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की शर्तें कोड, 2020। इन्होंने 29 पुराने केंद्रीय कानूनों को खत्म कर दिया, जो 1948 से 2017 तक अलग-अलग समय पर बने थे। इसका मतलब अब एक कानून होगा, न कि दर्जनों। ये बदलाव सिर्फ कागजी नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में असर डालेंगे।
सबसे बड़ा बदलाव? बेसिक सैलरी कम से कम 50% होनी चाहिए — यानी अगर आपका CTC 50,000 रुपये है, तो अब बेसिक 25,000 रुपये होगा। इसका मतलब आपकी जेब में अभी कम पैसा आएगा, लेकिन PF और ग्रेच्युटी ज्यादा होगी। ये बदलाव लंबे समय में आपकी रिटायरमेंट सुरक्षा को मजबूत करेगा, लेकिन अभी के लिए बजट पर दबाव बढ़ जाएगा।
बीड़ी और प्लांटेशन श्रमिकों के लिए इतिहास बन रहा है
अब तक, बीड़ी बनाने वाले श्रमिक या चाय, कॉफी, नारियल के प्लांटेशन में काम करने वाले लोग अक्सर कानूनी ढांचे से बाहर रहे। अब नहीं। भारत सरकार ने उन्हें भी श्रम कोड के दायरे में शामिल कर लिया है। इन श्रमिकों के लिए अब न्यूनतम वेतन, 48 घंटे की सप्ताहिक सीमा, ओवरटाइम पर दोगुना वेतन, और 30 दिन काम करने के बाद बोनस का अधिकार सुनिश्चित है।
ये बदलाव बहुत बड़ा है — क्योंकि ये श्रमिक अक्सर गैर-आधिकारिक क्षेत्र में रहते हैं, और उनकी आवाज़ नहीं सुनी जाती थी। अब वो भी एक कानूनी अधिकारी हैं।
गिग वर्कर्स के लिए पहली बार कानूनी पहचान
जब आप ज़ोमैटो, डिलीवरी बॉय, अउर ऑनलाइन टैक्सी ड्राइवर होते हैं, तो आप किसके लिए काम करते हैं? अब इसका जवाब मिल गया। पहली बार, गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स की एक कानूनी परिभाषा बनी है। लगभग 7.4 करोड़ लोग जो पिछले कई सालों से बिना किसी सुरक्षा के काम कर रहे थे, अब आधिकारिक तौर पर सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आ गए हैं।
यानी अब उन्हें बीमा, पेंशन, बच्चों की शिक्षा के लिए फंड — सब कुछ मिलेगा। ये बदलाव उन देशों के साथ भारत की तुलना करता है, जहां डिजिटल वर्कर्स के लिए कानून पहले से मौजूद हैं।
क्या चिंता है? श्रम संघों की आवाज़
लेकिन सब कुछ सुनहरा नहीं है। भारतीय श्रम संघ ने कहा है कि औद्योगिक संबंध कोड, 2020 में नौकरी देने और निकालने की नई शर्तें अधिकांश श्रमिकों के लिए खतरनाक हो सकती हैं। अगर कंपनी 300 से अधिक कर्मचारी रखती है, तो उसे नौकरी छीनने के लिए सरकार की अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी — जो पहले जरूरी थी।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये बदलाव बड़ी कंपनियों के लिए लाभदायक होगा, लेकिन छोटे और कमजोर श्रमिकों के लिए असुरक्षित हो सकता है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट में एक श्रम विशेषज्ञ ने कहा, 'ये कोड बहुत बड़े विचार से बने हैं, लेकिन उनका अमल अगर बिना श्रमिकों के साथ बातचीत के हुआ, तो ये अन्याय का कारण बन सकता है।'
राज्यों की जिम्मेदारी: अब नियम बनाना है
ये कोड केंद्र सरकार ने बनाए, लेकिन अमल करना है राज्यों का। 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश अब इन कोड्स के लिए अपने नियम बनाएंगे। ये नियम अलग-अलग हो सकते हैं — जैसे महाराष्ट्र में ओवरटाइम की दर थोड़ी अलग हो सकती है, जबकि तमिलनाडु में बोनस का तरीका अलग।
इसलिए, अगले 12-18 महीने तक असली असर दिखेगा। क्योंकि कानून बनना और उसका अमल होना — दो अलग चीजें हैं।
क्यों ये बदलाव जरूरी था?
पुराने कानूनों का एक अजीब बाजार था — कुछ 70 साल पुराने थे, कुछ अभी तक लागू नहीं हुए थे। कंपनियों को 20 से अधिक फॉर्म भरने पड़ते थे। श्रमिकों को अक्सर वेतन दे नहीं पाते थे। फैक्ट्रियों में सुरक्षा के नियम बेकार थे।
अब, एक फॉर्म, एक नियम, एक अधिकारी। राष्ट्रीय व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बोर्ड की स्थापना हुई है — जो हर सेक्टर के लिए एक जैसे सुरक्षा मानक तय करेगा। जहां 500 या अधिक श्रमिक काम करते हैं, वहां सुरक्षा समिति बनेगी। ये नियम उन फैक्ट्रियों के लिए भी लागू होंगे जहां अब तक कानून नहीं लागू होता था।
ये बदलाव आत्मनिर्भर भारत के लिए भी जरूरी है। वैश्विक निवेशक चाहते हैं कि भारत का श्रम व्यवस्था अच्छी हो — और अब वो अच्छी हो गई है।
अगला कदम: अमल का परीक्षण
अब सवाल ये है: क्या ये कोड वास्तविक जीवन में काम करेंगे? क्या छोटे उद्यमी इन्हें अपना पाएंगे? क्या श्रमिक अपने अधिकारों के बारे में जानेंगे? क्या श्रम निरीक्षक अब ज्यादा अक्षम नहीं होंगे?
कुछ राज्य जैसे गुजरात और कर्नाटक पहले से ही आधुनिक श्रम कानूनों के साथ आगे हैं। लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश या झारखंड में इसका अमल कैसे होगा — ये बड़ा सवाल है।
एक बात तय है: अब श्रमिक और कंपनी के बीच का रिश्ता नए नियमों के साथ लिखा जाएगा। और ये बदलाव भारत के काम करने वाले हर इंसान के जीवन को बदल देगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या मेरी वेतन संरचना बदल जाएगी?
हां, अगर आप फॉर्मल सेक्टर में काम करते हैं, तो अब आपकी बेसिक सैलरी कम से कम 50% होनी चाहिए। इसका मतलब आपकी जेब में अभी कम पैसा आएगा, लेकिन PF और ग्रेच्युटी में बढ़ोतरी होगी। उदाहरण के लिए, अगर आपका CTC 50,000 रुपये है, तो बेसिक 25,000 रुपये होगा — जिससे PF की राशि 2,500 रुपये से बढ़कर 3,750 रुपये हो जाएगी।
गिग वर्कर्स को क्या लाभ होगा?
7.4 करोड़ गिग वर्कर्स अब सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आ गए हैं। इन्हें अब बीमा, पेंशन, बच्चों की शिक्षा के लिए फंड, और बीमारी के समय राहत मिलेगी। ये पहली बार है कि ऑनलाइन डिलीवरी बॉय या ऑटो ड्राइवर को कानूनी रूप से सुरक्षा का अधिकार दिया गया है।
क्या बीड़ी श्रमिकों को अब भी शोषण होगा?
अब बीड़ी श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन, 48 घंटे की सप्ताहिक सीमा, ओवरटाइम पर दोगुना वेतन और 30 दिन काम करने के बाद बोनस का अधिकार कानूनी रूप से बन गया है। लेकिन इसका अमल राज्यों पर निर्भर करेगा। अगर श्रम निरीक्षक नियमित जांच नहीं करेंगे, तो शोषण जारी रह सकता है।
क्या नौकरी छीनना आसान हो गया है?
हां, अगर कंपनी 300 से अधिक कर्मचारी रखती है, तो उसे नौकरी छीनने के लिए सरकारी अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी — जो पहले जरूरी थी। इससे नियमित नौकरियां असुरक्षित हो सकती हैं। श्रम संघ इसे खतरनाक मान रहे हैं, खासकर छोटे शहरों में जहां श्रमिकों के पास विकल्प कम हैं।
क्या ये कोड सभी राज्यों में एक जैसे लागू होंगे?
नहीं। केंद्र ने कोड बनाए हैं, लेकिन राज्यों को अपने नियम बनाने होंगे। इसलिए, ओवरटाइम दर, बोनस की गणना, या सुरक्षा समिति का गठन — ये सब राज्य के अनुसार अलग हो सकता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में श्रम निरीक्षण ज्यादा कठोर है, जबकि बिहार में अभी तक ये अमल धीमा है।
कब तक इन कोड्स का पूरा अमल होगा?
कानून तो 21 नवंबर 2025 से लागू हो गया है, लेकिन पूरा अमल 12-18 महीने में होगा। राज्यों को अपने नियम बनाने होंगे, श्रम निरीक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा, और कंपनियों को अपनी प्रणालियां बदलनी होंगी। अभी तक केवल बड़ी कंपनियां ही तैयार हैं — छोटे उद्यमी अभी भी पीछे हैं।