मुंबई हाई अलर्ट: ‘लश्कर-ए-जिहादी’ नाम से 34 ह्यूमन बम की धमकी, नोएडा से एक गिरफ्तार

मुंबई हाई अलर्ट: ‘लश्कर-ए-जिहादी’ नाम से 34 ह्यूमन बम की धमकी, नोएडा से एक गिरफ्तार

क्या हुआ: व्हाट्सऐप मैसेज से शुरू हुआ अलर्ट

एक व्हाट्सऐप मैसेज, 34 ‘ह्यूमन बम’, 400 किलो RDX—और मुंबई की रात भर की भागदौड़। गुरुवार शाम मुंबई ट्रैफिक पुलिस की आधिकारिक हेल्पलाइन पर आया संदेश सीधे त्योहार के बीच पहुंचा। संदेश भेजने वाले ने खुद को ‘लश्कर-ए-जिहादी’ से जुड़ा बताया और दावा किया कि 14 पाकिस्तानी आतंकवादी शहर में घुस चुके हैं, 34 वाहनों में विस्फोटक लगाए जा चुके हैं और धमाके पूरे शहर को “हिला देंगे”। यह मैसेज गणेशोत्सव के आखिरी चरण, अनंत चतुर्दशी से ठीक पहले आया, जब लाखों लोग immersions के लिए सड़कों पर निकलते हैं।

मैसेज की भाषा और टाइमिंग दोनों ने चिंताएं बढ़ाईं। पुलिस ने इसे हल्के में नहीं लिया। देर रात तक कंट्रोल रूम में कॉल्स की भरमार रही, फोर्स को तुरंत मैदान में उतारा गया—नकाबंदी, रूट डॉमिनेशन, भीड़भाड़ वाले इलाकों में गश्त। यही वजह है कि शहर को कुछ घंटों में ही मुंबई हाई अलर्ट मोड में डाल दिया गया।

दावा बड़ा था—“एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है।” यह आंकड़ा व्यवहारिक नहीं दिखता, लेकिन ऐसी भाषा दहशत फैलाने के लिए कारगर मानी जाती है। मुंबई की संवेदनशीलता 26/11 के बाद से अलग स्तर पर है। त्योहार, समुद्री तट, लोकल ट्रेनों की भीड़ और रातभर चलने वाले विसर्जन—इन सबके बीच एक फर्जी संदेश भी बड़े ऑपरेशन को ट्रिगर कर देता है।

इसी बीच, मुंबई पुलिस ने साफ किया कि घबराने की जरूरत नहीं है, पर एहतियात कम नहीं होगा। क्राइम ब्रांच, एटीएस, जोनल यूनिट्स, बीडीडीएस (बम निष्क्रिय दस्ते) और डॉग स्क्वॉड—सबको एक्टिव मोड में रखा गया। ट्रैफिक पुलिस ने विजर्सन रूट्स पर बैरिकेडिंग और डायवर्जन के साथ माइक अनाउंसमेंट भी बढ़ाए, ताकि अफवाहों से बचा जा सके।

जांच कैसे आगे बढ़ी और सुरक्षा का खाका

धमकी का धागा मोबाइल नंबर से पकड़ा गया। क्राइम ब्रांच की शुरुआती छानबीन कॉल डिटेल रिकॉर्ड, हैंडसेट आईएमईआई और लोकेशन पिंग्स से आगे बढ़ी। टीम ने नंबर की आखिरी सक्रिय लोकेशन गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) में पकड़ी। शुक्रवार को एक टीम नोएडा पहुंची और सेक्टर-79 से 50 वर्षीय अश्विनीकुमार सुप्रा को हिरासत में लिया। पुलिस के मुताबिक, प्राथमिक पूछताछ और डिजिटल ट्रेल से मामला फर्जी धमकी का लग रहा है।

वर्ली पुलिस स्टेशन में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 351 (आपराधिक धमकी) के तहत केस दर्ज किया गया है। पहले ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 506 लगती थी; अब नए कानून के लागू होने के बाद प्रावधान बदले हैं, पर संदेश साफ है—फर्जी धमकी भी अपराध है और सख्त कार्रवाई होगी। आगे की जांच में यह देखा जा रहा है कि आरोपी अकेला था या किसी नेटवर्क का हिस्सा, और क्या उसने पहले भी ऐसी हरकत की है।

पुलिस की फील्ड एक्शन समानांतर चला। भीड़भाड़ वाले विसर्जन रूट्स—गिरगांव चौपाटी, जुहू, वर्सोवा, पवई—पर अतिरिक्त बल तैनात रहा। संवेदनशील मंडलों और समुद्री किनारों पर एंटी-सबोटाज चेकिंग हुई। रेलवे पुलिस और मुंबई पुलिस ने मिलकर स्टेशन प्लेटफॉर्म, उपनगरीय ट्रेनों और फुटओवर ब्रिजों पर गश्त बढ़ाई। शाम से रात तक बीडीडीएस यूनिट्स ने वाहनों की रैंडम चेकिंग की, पार्किंग लॉट्स और बस डिपो खंगाले।

त्योहार प्रबंधन की अपनी चुनौतियां हैं—लाखों की भीड़, लंबी शोभायात्राएं, साउंड सिस्टम, अस्थायी बिजली कनेक्शन, और पानी में उतरते समय होने वाली धक्का-मुक्की। ऐसे में, झूठी धमकी भी संसाधनों को मोड़ देती है। पुलिस ने क्विक रेस्पॉन्स टीम्स (QRT) को हॉटस्पॉट्स के पास पोजिशन किया, ड्रोन सर्विलांस का सीमित इस्तेमाल किया, और लाइफगार्ड्स तथा एनडीआरएफ को अलर्ट मोड पर रखा।

यह पहला मौका नहीं है जब शहर को ऐसी फर्जी चेतावनियों से जूझना पड़ा हो। हाल के महीनों में कलवा रेलवे स्टेशन पर बम होने की गलत सूचना, इस्कॉन मंदिर को धमकी भरे ईमेल, और एयरपोर्ट से जुड़े फर्जी कॉल्स दर्ज हुए हैं। ट्रैफिक पुलिस के व्हाट्सऐप नंबर पर भी ऐसी कई झूठी सूचनाएं आती रही हैं। इस पैटर्न ने जांच एजेंसियों को डिजिटल स्रोतों—वर्चुअल नंबर, वीओआईपी कॉल्स, प्रीपेड सिम, और हैंडसेट शेयरिंग—पर ज्यादा फोकस करने को मजबूर किया है।

धमकी के इस केस में भी कुछ सवाल खुले हैं—मैसेज का सटीक शब्दशः कंटेंट क्या था, हैंडसेट किसके नाम रजिस्टर्ड है, सिम किसने खरीदी, और क्या मैसेज भेजने से पहले कोई ‘ड्राई रन’ हुआ? पुलिस इन बिंदुओं पर काम कर रही है। बरामद फोन की फॉरेंसिक इमेजिंग, चैट बैकअप, क्लाउड लॉगिन, ईमेल रिकवरी और ऐप-लेवल मेटाडेटा से आगे की कड़ियां निकलती हैं।

सुरक्षा के मोर्चे पर शहर का ‘स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर’ अब काफी परिपक्व है। बड़ी धमकी मिले तो क्या-क्या होता है? मोटे तौर पर ये कदम तुरंत शुरू होते हैं:

  • कंट्रोल रूम से मल्टी-एजेंसी अलर्ट—क्राइम ब्रांच, एटीएस, ट्रैफिक, आरपीएफ, मरीन, और फायर ब्रिगेड
  • नकाबंदी और रूट डॉमिनेशन—हाईवे, फ्लाईओवर, टोल, कोस्टल रोड और प्रमुख जंक्शनों पर
  • बीडीडीएस और डॉग स्क्वॉड—बस डिपो, पार्किंग, बाजार, मॉल, धार्मिक स्थल, रेल स्टेशन
  • क्राउड मैनेजमेंट—डायवर्जन, माइक्रो रूटिंग, पब्लिक अनाउंसमेंट और ड्रोन निगरानी
  • इंटेलिजेंस फिल्टर—अफवाह, कॉपी-पेस्ट, पुरानी खबरें और फोटो-वीडियो की फॉरेंसिक जांच

गणेश विसर्जन के दौरान चुनौती दोगुनी होती है। लालबागचा राजा जैसे बड़े मंडलों के रूट पर देरी, भीड़ का घनत्व और स्थानीय गालियां (लेन) सुरक्षा टीमों के लिए मुश्किलें बढ़ाते हैं। इसी वजह से पुलिस ने कई जगह ‘डेडिकेटेड रिस्पॉन्स लेन’ बनाई, ताकि इमरजेंसी में एंबुलेंस और बीडीडीएस फौरन पहुंच सके।

अब बात जिम्मेदारी की। अफवाह फैलाना अपराध है—और व्हाट्सऐप, टेलीग्राम या किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म पर डर फैलाने वाला मैसेज फॉरवर्ड करना भी खतरे से खाली नहीं। पुलिस बार-बार कह रही है: संदिग्ध वस्तु दिखे तो दूरी बनाएं, 100/112 या नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचना दें, और बिना जांचे-परखे कोई संदेश आगे न भेजें। त्योहारों में सुरक्षा टीम्स तब बेहतर काम कर पाती हैं जब नागरिक सहयोग करते हैं—रूट फॉलो करना, बैरिकेड्स न तोड़ना, और संदिग्ध हरकत दिखे तो तुरंत बताना।

जांच एजेंसियां यह भी समझना चाहती हैं कि फर्जी धमकियां क्यों बढ़ रही हैं। कुछ केसों में मजाक, बदला या ‘ट्रॉलिंग’ के लिए ऐसा किया जाता है; कभी निजी विवाद, तो कभी दहशत फैलाने का उद्देश्य। लेकिन हर फर्जी अलर्ट वास्तविक ऑपरेशन का समय, पैसा और मानव संसाधन खा जाता है। इसी वजह से ऐसे मामलों में जमानत से पहले कोर्ट डिजिटल डिवाइस की जांच और साइबर ट्रेसिंग का समय देती है, और दोष साबित होने पर सजा भी कड़ी हो सकती है।

नोएडा से पकड़े गए आरोपी को मुंबई लाया जा रहा है। यहां कोर्ट में पेशी होगी और फिर पुलिस रिमांड के दौरान पूछताछ में उसके डिजिटल फुटप्रिंट—ईमेल, क्लाउड बैकअप, सामाजिक मीडिया अकाउंट—की जांच होगी। अगर किसी और के साथ साजिश के संकेत मिले, तो आगे और गिरफ्तारी संभव है।

मुम्बई की सुरक्षा मशीनरी का एक बड़ा हिस्सा ‘प्रीवेंशन’ पर चलता है—यानी धमकी की सत्यता साबित होने का इंतजार नहीं, पहले सुरक्षा। इस मॉडल की वजह से भीड़भाड़ वाले आयोजनों में दुर्घटना का जोखिम घटता है। हां, फर्जी धमकियों से नागरिकों को असुविधा होती है—अधिक चेकिंग, लंबी कतारें, ट्रैफिक डायवर्जन—पर यह कीमत किसी भी संभावित खतरे से छोटी है।

फिलहाल राहत यही है कि धमकी फर्जी निकली, शहर ने रात गुजारी और त्योहार का उत्साह बना रहा। पर सबक भी साफ है—डिजिटल दुनिया में एक मैसेज हथियार बन सकता है। जिम्मेदारी हमारी भी है—सावधान रहें, अफवाह न फैलाएं, और संदिग्ध चीज दिखे तो पुलिस को तुरंत बताएं।

पुलिस ने साफ किया है कि शहर में गश्त और चेकिंग जारी रहेगी, खासकर विसर्जन रूट्स, धार्मिक स्थल, परिवहन हब और समुद्री किनारों पर। एजेंसियां हर नए इनपुट को क्रॉस-चेक कर रही हैं। धमकी भले फर्जी हो, सुरक्षा में ‘ढील’ शब्द नहीं होता—खासकर मुंबई में।

लेखक
महेंद्र प्रताप सिंहवर्मा

मैं महेंद्र प्रताप सिंहवर्मा हूं, और मेरी विशेषज्ञता सरकारी, कानूनी, सैन्य और समाचार क्षेत्र में है। मैं भारतीय समाचार और भारतीय जीवन के बारे में लिखना पसंद करता हूं। मेरा उद्देश्य जनता को सही सूचना प्रदान करना और उन्हें सचेत करना है। मैं विभिन्न समाचार पत्रों और सामाजिक मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करता हूं। समाज में हो रहे परिवर्तनों और नई सरकारी नीतियों का समर्थन करता हूं।